दोनों अब जवान हो चुके थे। मोहब्बत ने उन्हें इंसान बनना सीखा दिया था। वे समाज और दुनियादारी के नियमों को जान चुके थे। दोनों अभी एक दूसरे के साथ जीने मरने के बारे में सोच ही रहे थे कि एक दिन उनके जीवन में अचानक से ट्रेजेडी आ गई।
गर्मी अपने शबाब पर थी। तापमान धीरे-धीरे अपना प्रचंड रूप धारण कर रहा था। राकेश अपने शॉप पर कस्टमर्स को साड़ी दिखाने में लगा हुआ था। जैसे ही कस्टमर से फ्री होता मोबाइल चार्ज में लगाकर फेसबुक पर लग जाता था। राकेश की दुकान शहर के नामी मल्टीप्लेक्स पीडीआर के सामने थी। जिस कारण उसकी नजर वहां आने-जाने वाले कपल पर पड़ती थी। राकेश की उम्र इस समय करीब 18-19 के आस-पास रही होगी। लड़के के मन मे अभी-अभी ‘रांझणा’ फ़िल्म देखकर मोहब्बत करने की आस जगी थी। लड़का अभी प्यार-मोहब्बत करना सीख रहा था।
हालांकि राकेश के घर की इकोनॉमिकल कंडीशन ठीक न होने से राकेश केवल कक्षा-10 तक ही स्कूल में क्लास कर पाया था। जैसे तैसे प्राइवेट फॉर्म भरके इंटरमीडिएट किया। आगे ग्रेजुएशन करने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाया। इनसब के चलते उसे कभी लड़कियों के साथ दोस्ती का माहौल नहीं मिल पाया।
उस समय नोकिया 3310 मोबाइल में 14 रुपए के एयरसेल के पहले अनलिमिटेड और बाद में 250 एमबी इंटरनेट का जो सुख मिलता था, वो आज जिओ के रोज 2 जीबी के डेटा पैक में भी नहीं मिल पाता।
उस दिन राकेश की फेसबुक पर एक लड़की से दोस्ती हो गई, लड़की का नाम था सुनैना। धीरे-धीरे दोस्ती और गहरी होती चली गई। अचानक से एक दिन दोनों अपने घर से दूर एक मंदिर में मिले। सुनैना उम्र में राकेश से 2 साल बड़ी थी।
खैर अब जो भी हो ! धीरे-धीरे दोनों की जवानी अपने शबाब पर पहुंच रही थी। फेसबुक पर हुई दोस्ती ना जाने कब प्यार में बदल गई, इसका दोनों को एहसास तक ना हुआ। हालात यह थे कि दोनों किसी नवसिखिये की तरह डेटिंग वगैरह के शौकीन नहीं थे और न ही उन्हें दिखावा जरा सा भी पसंद हो। दोनों की मुलाकात भी हुई तो, मिथुन चक्रवर्ती के फिल्मों की तरह। वे दोनों पहली बार एक मंदिर में मिले। सुनैना जो कि एक मीडिल क्लास फैमिली से बिलोंग करती थी। उसने जीन्स और टॉप पहना हुआ था। राकेश, जो सिटी के एक छोटे से शॉप पर काम करता था। गर्लफ्रैंड से मिलने पहली बार साईकल से आया था और वो भी सिंपल लुक में। शर्ट तो उसने पहनी हुई थी लेकिन वो शायद बगल में फ़टी हुई थी। ये तो बात थी दोनों के ड्रेसिंग सेंस की, अब आते हैं दोनों की लव स्टोरी पर। पहली बार मिलते ही दोनों एक दूसरे को देखते रह गए। राकेश ने सोचा कि इतनी सुंदर लड़की मुझसे कैसे पट गई? उसे अपनी किस्मत पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। ये तो वही बात हो गई थी कि मिथुन चक्रवर्ती को अचानक से श्री देवी से प्यार हो जाए। लेकिन वो फिल्मी बात थी। यहां बात रियल लाइफ की थी।
राकेश- तुम ही सुनैना हो ?
सुनैना- हां, मैं ही हूं । तुम बताओ, तुमने मुझे कैसे पहचाना?
राकेश- इस मंदिर में सबसे खूबसूरत तो तुम ही लग रही। और तुम्हारी आंखें मेरी ही तरफ थी, जैसे अपनी आंखों से ही तुम मुझे खा जाओगी।
सुनैना (स्माइल देते हुए)- आओ चलो कहीं और चलते हैं। यहां रुकना ठीक नहीं है।
राकेश- कहां चलोगी?
सुनैना- लडक़ी से मिलने आए हो, और ये भी नहीं पता कि लड़की को लेकर कहां जाना है?
राकेश- चलो तो कहीं दूर चलकर मोहब्बत करते हैं।
सुनैना- हम्म, ठीक है ! चलो।
फिर वहां से दोनों निकलकर पैदल ही पास में स्थित एक पार्क की ओर निकल चलते हैं। दोपहर का समय और सामने कॉलेज बन्द होने से पार्क में सन्नाटा बिसरा पड़ा था। अब दोनों पार्क में बैठ चुके थे। पहला पहला प्यार, और पहली पहली मुलाकात ! इन सब के बीच दोनों को एक दूसरे के प्रति झिझक महसूस हो रही थी। तभी राकेश ने अपना हाथ सुनैना के हाथ पर रख दिया। दोनों के मन में बेचैनियां होने लगीं। तभी दोनों ने एक दूसरे के पास आकर स्मूच किया। ऐसे में दोनों की एक दूसरे के प्रति झिझक खत्म हो गई। अब समय काफी हो चला था, सुनैना को घर भी जल्दी पहुंचना था। पहली मुलाकात खत्म होने को आई थी। दोनों ने बाहर आकर कोल्ड ड्रिंक पिया और अपने-अपने घर को चलते बने।
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घर पहुंचते ही दोनों ने एक दूसरे से फिर से फोन पर बात करने लगे। उस दिन पहली मुलाकात के उस सुख के आगे अमृत भी फेल था। दोनों के मन में बेचैनी बढ़ने लगी कि अब हमारी अगली मुलाकात कब होगी !
राकेश- कैसा लगा आज मुझसे मिलकर?
सुनैना- एकदम अच्छा। लेकिन, तुम बड़े शरारती हो।
राकेश- तुम तो कुछ बोल ही नहीं रही थी। मैंने सोचा पहले मैं हम दोनों के बीच की दूरी को कम करता हूं।
सुनैना- अच्छा। तो अब दूरी कम हो गई?
राकेश- हां, कम हो गई। फिर कब मिलोगी?
सुनैना- देखो, जब समय मिलेगा, तो मिलूंगी।
राकेश- ठीक है।
अगले दिन फिर से सुनैना किसी काम से घर से बाहर निकली। उसने निकलने से पहले ही राकेश को फ़ोन कर दिया था। दोनों कालभैरव मंदिर में मिलने को राज़ी हुए। दोपहर का समय था, रास्ते भी लगभग खाली ही थे। कोई शोर शराबा नहीं, आने जाने वाले भी कम थे। दोनों ने अपने रिश्ते की सलामती के लिए मंदिर में पूजा कर भगवान से आशीर्वाद मांगा। इसके बाद दोनों वहां से गंगा घाट की ओर निकल पड़े। घाट की सीढ़ियों पर बैठे हुए दोनों कुछ समय के लिए एक दूसरे में खो गए। वहां का सन्नाटा इस बात की गवाही दे रहा था। कुछ देर बैठे रहने के बाद दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और अपने-अपने घर को चल दिए।
इसी तरह दोनों की लव स्टोरी को 2 साल हो गए। ये समय कैसे बीत गया, उन्हें पता भी न चला। समाज और घरवालों की नजरों से बचकर साथ घूमने-फिरने और मोहब्बत करने में ये 2 साल बीत गया। इसी बीच दोनों का आपस मे रूठना, मनाना भी जारी रहा। इस दौरान इन दोनों ने वो सब किया जो कपल्स लिव-इन-रिलेशनशिप के दौरान करते हैं। वे दोनों एक दूसरे के हो चुके थे। उन्हें शायद उसका आभास भी नहीं होगा कि ये मोहब्बत बस कुछ ही दिनों की शेष है।
दोनों कपल्स अब जवान हो चुके थे। मोहब्बत ने उन्हें इंसान बनना सीखा दिया था। वे समाज और दुनियादारी के नियमों को जान चुके थे। दोनों अभी एक दूसरे के साथ जीने मरने के बारे में सोच ही रहे थे कि एक दिन उनके जीवन में अचानक से ट्रेजेडी आ गई।
एक दिन सुनैना ने राकेश को अचानक से मैसेज किया कि उसके बैकबोन में काफी तेज दर्द हो रहा है और पापा उसे लेकर लखनऊ डॉक्टर के पास जा रहे हैं। राकेश को कुछ अनहोनी होने की आशंका लगी। उसने वापस सुनैना को कॉल किया लेकिन सुनैना ने जाते समय अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर घर पर ही छोड़ दिया था ताकि पापा को कोई डाउट न हो। अब राकेश यहां बिन पानी के मछली जैसे तड़प रहा था। उसे सुनैना को कांटेक्ट करने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। वह बुरी तरह परेशान था। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था।
15 दिन बाद राकेश के मोबाइल पर अचानक से एक अननोन नंबर से मेसेज आया कि सुनैना घर आ चुकी है। वह तुमसे मिलना चाहती है। राकेश ने उस नंबर पर कॉल बैक किया।
राकेश- हेल्लो! कौन बोल रहा है?
फोन कॉल- मैं सुनैना को फ्रेंड शिखा बोल रही हूं। सुनैना की तबियत थोड़ी खराब है। वो तुमसे मिलना चाहती है। कब मिल सकते हो?
राकेश- ठीक है। कल संडे है। कल मैं मिलूंगा। कहां मिलना है? सुनैना कहां है?
शिखा- सुनैना अभी सोई हुई है। उसकी तबियत ठीक नहीं है। उसने मुझसे कहा है तुम्हें कॉल करने को। उसे वहीं पर मिलना है जहां तुम दोनों पहली बार मिले थे।
राकेश- ठीक है। कल 3 बजे उसे बुला लो पास वाले पार्क में। वहीं जहां हमलोग पहली बार मिले थे।
राकेश अभी सोच ही रहा था कि आखिर सुनैना को ऐसा भी क्या हुआ है कि वह मुझसे बात नहीं कर पा रही है। अगले दिन दोनों उसी पार्क में मिले। कहानी जहां से शुरू हुई थी, एक बार फिर से वही आकर रुक गई। फर्क सिर्फ इतना था कि इस बार उन दोनों के साथ एक नया चेहरा था, सुनैना की फ्रेंड शिखा।
राकेश- कहां थी तुम इतने दिनों तक? एक फोन कॉल भी नहीं किया तुमने? कैसी तबियत है अभी?
सुनैना- ठीक हूं अब। पापा के साथ हरदम रहती थी इसलिए कॉल नहीं कर पाई थी। आज मैं तुमसे यहां कुछ मांगने आई हूं।
राकेश- तुम्हारे लिए तो जान हाजिर है। मांगो क्या मांगना है !
सुनैना ने झट से अपने पॉकेट में हाथ डाला और सिंदूर की पुड़िया निकाल ली। उसने उसे राकेश के हाथ में देते हुए कहा कि आज मेरे मांग में इसे भरकर मेरी ख्वाहिश पूरी कर दो।
राकेश- ये क्या बेवकूफी है? दिमाग खराब है क्या?
सुनैना- हां! जो समझ लो। आज मेरी मांग भर दो। नहीं तो कल मुझे तुम नहीं देख पाओगे। तुम्हें मेरी कसम है !
सुनैना के जिद करने पर राकेश ने उसकी मांग में सिंदूर भर दिया। सुनैना ने राकेश को गले लगा लिया। इसके बाद वे दोनों वहां से चले गए। सुनैना ओढ़नी से अपना सिर ढककर घर चली गई।
अगले दिन सुनैना से राकेश की बात नहीं हुई। राकेश को यह सब समझ ही नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है ! कभी अचानक से तबियत खराब हो जाना, कभी उसकी सहेली का कॉल करना, अचानक से सिंदूर लेकर मांग में भरना। खैर, अब इनसब से हटकर राकेश अब सुनैना को कांटेक्ट करने की कोशिश कर रहा था। उसने शिखा को भी कॉल किया लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ। 2 दिन बाद शिखा का अचानक से कॉल आया।
शिखा- हेल्लो, राकेश?
राकेश- हां, शिखा बोलो। सुनैना कहां है?
शिखा- कब मिलोगे ये बताओ ! मैं तुमसे मिलकर सब बताती हूं।
राकेश- आ जाओ आज घर पर मिलने। घर पर कोई नहीं है। सारे लोग बाहर गए हुए हैं।
शिखा- ठीक है। मैं कुछ देर में आती हूं।
राकेश- ओके आओ। सुनैना को भी लेते आना।
लगभग एक घण्टे बाद शिखा राकेश के घर पर आई। उसने डोरबेल बजाई। राकेश ने दरवाजा खोला लेकिन वह साथ में सुनैना को न देख चिंतित था।


राकेश- सुनैना कहां है? वो साथ नहीं आई?
शिखा- अंदर चलो, सब बताती हूं।
राकेश- क्या बात है? क्या छुपा रही हो मुझसे?
शिखा- सुनैना अब इस दुनिया में नहीं रही।
राकेश- दिमाग खराब है क्या तुम्हारा?
शिखा- जो बोल रही हूं, समझो उसे।
राकेश- मैं नहीं मान सकता। देखो, तुम ऐसी घटिया मजाक मत करो मेरे साथ। सच सच बताओ सुनैना कहां है?
शिखा- तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा न । ये फोटो देखो।
शिखा ने तुरंत मोबाइल से 2 दिन पहले की क्लिक की फ़ोटो दिखाई। जो शिखा की लाश की थी। राकेश के सर पर दुखों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा। वो कुछ देर तक तो शॉक्ड रहा लेकिन किस तरह 10 मिनट में वह नार्मल हुआ।
राकेश- कैसे हुआ ये सब?
शिखा- दरअसल, उसे पिछले 6 महीने से बोन कैंसर था। वह तुम्हें यह सब बताकर परेशान नहीं करना चाहती थी। उसे पता था कि वह ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहेगी। उसे अक्सर बैकबोन में दर्द हो जाया करता था। लेकिन इस बार जब उसके पापा उसे डॉक्टर को दिखाने ले गए तो डॉक्टर ने बताया कि उसकी लाइफ कभी भी समाप्त हो सकती है। यह बात सुनैना ने चोरी से सुन लिया था।
राकेश- जब ऐसी बात थी तो तुमने मुझे उस दिन बताया क्यों नहीं?
शिखा- इसलिए कि मुझे उसने कसम दिया था। उसने यह भी कहा था कि मेरे मरने के बाद ही राकेश को ये सारी बातें बताना। उसकी अंतिम इच्छा थी कि वो तुम्हारी सुहागन मरे। इसलिए उस दिन वह सिंदूर लेकर आई थी। इतना सुनते ही राकेश विलाप करने लगा कि वह अंतिम बार सुनैना को गले लगाकर विदा भी नहीं कर पाया।
अब इस घटना को पूरे एक साल समाप्त हो चुके थे। राकेश एक बार फिर से अपने काम में बिजी हो गया था। जल्द ही उसने पढ़ाई करके एक गवर्नमेंट जॉब भी पा लिया था। उसकी शादी एक बहुत ही सुंदर सुशील लड़की से हुई। उसकी पत्नी उससे बहुत प्यार करती थी और वह भी अपनी पत्नी को खूब प्यार करता था। लेकिन याद तो सुनैना की अब भी आती है। ये कहानी राकेश ने अपनी पत्नी को सुनाई थी। जिसके बाद राकेश की पत्नी ने ही उसे बीती बातों को भुलाकर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया।