Holi पर ‘एक मोहल्ला, एक होलिका’ का ज्ञान, ईद पर ‘एक मोहल्ला, एक बकरा’ वाला सलाह कब मिलेगा? लिबरल गिरोह का ज्ञान बांटने का चलन फिर से शुरू

by Admin
0 comment
holi-in-braj

होली (Holi) नजदीक आते ही सभी लिबरल प्रकृति प्रेमी हो जाते हैं. होली आ गई है. मतलब, रंग गुलाल का त्योहार… यानी हिंदुओं का त्योहार. अब त्योहार हिंदुओं का है, तो इस पर हंगामा मचाया और नफरत फैलाया जाना तो स्वाभाविक है. वामपंथी एक्टिविस्ट हिंदुओं के त्योहारों के खिलाफ नफरत फैलाने में किसी तरह का कसर नहीं छोड़ते. इनका साथ इस्लामिक कट्टरपंथी भी बखूबी देते हैं. हिंदू त्योहारों के खिलाफ प्रोपेगेंडा में मीडिया बुद्धिजीवी और सेलिब्रिटी का पूरा का पूरा ग्रुप शामिल होता है. होली हो या दीपावली इनका ज्ञान चरम पर रहता है. वहीँ, गैर हिंदू त्योहारों पर उनके बोल बचन इनके शरीर के विषय छिद्र से भीतर घुस जाते हैं.
ऐसा पहली बार नहीं है, जब होली को लेकर ज्ञान दिया जा रहा हो. होली आते ही वामपंथी पानी प्रेमी हो जाते हैं और पानी बचाने की बातें करने लगते हैं. ये वही सेलिब्रिटी हैं, जो अपने घर में बने स्विमिंग पूल में नहा नहा कर रोज हजारों लीटर पानी बर्बाद करते हैं. पानी के प्रति इनका ज्ञान केवल होली पर ही नजर आता है. कभी सुखी होली खेलने को कहा जाता है, तो कभी केवल फूलों के इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.

समझ में नहीं आ रहा कि जब रंग ही नहीं तो होली क्यों? दैनिक जागरण में विज्ञापन छपा है. विज्ञापन किस वक्त है, ये स्पष्ट नहीं हो प् रहा है. लेकिन ये होलिका दहन का ही विज्ञापन है. जिसमें लिखा हुआ है ‘दैनिक जागरण की पहल, एक मोहल्ला, एक होलिका’. इसके अलावा नीचे लिखा हुआ है इस बार होली पर प्रयास करें कि थोड़ी दूर पर अलग-अलग होलिका जलाने की जगह जितना हो सके, एक मोहल्ले में एक ही होलिका जलाएं. इससे प्रदूषण घटेगा, अपनापन बढ़ेगा.

AVS

साल भर तक AC रूम में बैठकर ओजोन परत की ऐसी तैसी करने वाले, अब होली पर ज्ञान बांटते दिखाई दे रहे हैं. ईद और क्रिसमस पर इनका ज्ञान इनके शरीर के किसी गुप्त छिद्र से भीतर घुस जाता है. गैर हिंदू त्योहारों पर बधाइयां देने वाली मीडिया होली पर जमकर हिंदुओं को नीचा दिखाती है.
ऐसे में दैनिक जागरण ने भी हिन्दुओं को सलाह दिया, ‘यातायात बाधित ना करें, इससे हमें और आपको ही परेशानी होगी. हाईटेंशन व अन्य तारों को बचाएं. लकड़ी की जगह उपलों का उपयोग करें ताकि बचे रहें हमारे पेड़. ऐसा कोई सामान ना जलाएं जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो.’ ये जितने भी ज्ञान हैं, ये सभी होली और दीपावली पर ही देखने को मिलते हैं. क्या कभी ईद और क्रिसमस पर ऐसे ज्ञान निकलते हुए सुना है?

क्या ईद पर मीडिया लोगों को यह सलाह देती है कि एक मोहल्ले में एक ही बकरा काटें क्योंकि जीव जंतुओं की हत्या करना ठीक नहीं है. किसी बेगुनाह की जान लेना कहां तक उचित है? क्या कभी ऐसे सलाह दिखते हैं कि जानवरों के खून को सड़क पर न बहाया जाए. या फिर बचे हुए मांस के टुकड़ों को सड़क पर ना फेंका जाए, इससे बीमारी पैदा होती है. इस्लामी मुल्कों में तो सड़क पर खून की नदियां बहती हैं. ऐसे ही ईद पर कभी यह सलाह नहीं दिया कि सड़क जाम करके नमाज ना पढ़ें. इससे तो सचमुच यातायात बाधित होता है.

holi-in-braj
होली दिल खोलकर मनाये, किसी लिबरल गिरोह के सदस्य की बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है

वहीँ क्रिसमस और ईसाई नववर्ष के मौके पर भी कभी इस तरह के कोई ध्यान नहीं दिए जाते. ‘पटाखे ना जलाएं’ दीपावली समाप्त होते ही ऐसे ज्ञान देने की तारीखें एक्सपायर हो जाती हैं. क्रिसमस पर कभी आर्टिफिशियल पेड़ों को घर पर जाने की सलाह नहीं दी जाती. कभी यह नहीं कहा जाता कि पार्टी में पानी और भोजन बर्बाद ना करें और खुलकर जश्न मनाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सारे पर्यावरण बचाने का ठेका हिन्दुओं ने ही ले रखा है, जो अक्सर प्रकृति की पूजा करते हैं.

क्या किसी ने दैनिक जागरण से पूछा कि अखबारों के लिए कागज कैसे बनता है? इसके लिए पेड़ काटे जाते हैं या नहीं? क्या कभी दैनिक जागरण लोगों को यह सलाह देगा या कभी खबर प्रकाशित करेगा कि आप अखबार ना खरीदें. इसके लिए जो कागज आता है, वह पेड़ काटकर बनाया जाता है, लेकिन नहीं ‘एक मोहल्ला, एक बकरा या एक मोहल्ला, एक क्रिसमस ट्री’ लिखने में इनके हाथ के खून की नलियां सूख जाती हैं. इनके पास हिम्मत है, तो केवल एक मोहल्ला एक होलिका लिखने की.
होलिका के बारे में सभी जानते हैं कि भक्त प्रहलाद को मारने के लिए उनकी बुआ होलिका जिंदा ही उन्हें लेकर आग में बैठ गई थी. होलिका दहन एक ऐसा त्योहार है, जो भक्त प्रहलाद के राक्षसों के अत्याचार के बावजूद जिंदा बच जाने की कहानी बताता है. एक यूट्यूबर और वामपंथी महिला ने होलिका दहन को महिला विरोधी त्योहार बताते हुए पूछ दिया कि एक सभ्य समाज में स्त्री को जिंदा जला जाना कहां तक उचित है? ऐसी बातें वही करते हैं जिन्हें न तो हमारे त्योहारों के पीछे का इतिहास पता है, न ही उसकी कथा.

vedanta Academy
Advertisement

महिषासुर को पूजने वाले लोक अक्सर असुरों को अपना आदर्श बताते हुए दिख जाते हैं. अगर होलिका जलाना स्त्री विरोधी है, तो क्या हर साल रावण को दशहरा के मौके पर जलाए जाने को पुरुष विरोधी बताकर आंदोलन खड़ा कर दिया जाना चाहिए? जिस हिंदू धर्म में स्त्रियों की पूजा होती है, हिंदू धर्म में पाश्चात्य वोक एक्टिविज्म की आवश्यकता ही नहीं है.

होली रंगों का त्योहार है, रंग और पानी के बिना हम इसे क्यों मनाएं? ऐसे ही महाशिवरात्रि पर दूध बचाने का ज्ञान दिया जाता है. ‘दीपावली पर पटाखे मत जलाओ, दिए मत जलाओ’ से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जाता है. दुर्गा पूजा पर हिंदुओं को नीचा दिखाया जाता है कि भारत में बलात्कार होते हैं. गणेश चतुर्थी के मौके पर प्रतिमा जल में विसर्जित न करने को कहा जाता है. जितने हिंदू त्योहार उतने किस्म के नए-नए ज्ञान.

त्योहार हमेशा वैसे ही मनाया जाना चाहिए, जैसा कि हमारे शास्त्रों में वर्णित है, जैसे हमारे पूर्वज उत्साह के साथ मनाते रहे हैं. हिंदू त्योहारों में ना तो हिंसा के लिए कोई जगह है, और ना ही किसी और को नुकसान पहुंचाया जाता है. उत्सव के दौरान सभी लोग जश्न में डूबे रहते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं और ईश्वर की पूजा अर्चना करते हैं. यहां लिबरल गिरोह के लिए कोई जगह नहीं है. जहां दया की जरूरत है, वहां दिखाने में इनकी हालत पस्त हो जाती है. क्योंकि इनका नारा है- ‘गुस्ताख रसूल की एक ही सजा, सिर तन से जुदा…’
इसलिए खूब अच्छे से होली मनाए बनाइए. मुशर्रफ का मातम नहीं है, रंग लगाइए, एक दूसरे को पानी में रंग घोल कर एक दूसरे पर उड़ेलिए. बस हमें ऐसे रंगों का प्रयोग नहीं करना है, जिससे हमारा नुकसान हो, ब्रज में फूलों की होली, काशी में चिता भस्म की होली और मोहल्ले में अबीर गुलाल की होली सब खेलिए. पकवान खाइए, पूजा-पाठ कीजिए और जो ज्ञान बांटे, उसे जरूर दिखाइए कोई ‘दैनिक जागरण’ या कोई ‘ज्ञानी कुमार’ हमें ज्ञान देकर हमारा हिंदू त्योहार मनाने के तरीके नहीं बदल सकते.

You may also like

Leave a Comment

cropped-tffi-png-1.png

Copyright by The Front Face India 2023. All rights reserved.