जिस समय राम-रावण का महासंग्राम चल रहा था. मायावी राक्षस अहिरावण भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण को निद्रा के समय में बेहोश कर उन्हें पाताल लेकर चला गया. अपने भाई रावण को हारता देख अहिरावण ने रावण की मदद के लिए ऐसी माया रची कि सारी सेना गहरी निद्रा में सो गई. तब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में पाताल लोक ले गया. इस विपदा के समय में सभी ने संकट मोचन हनुमानजी का स्मरण किया.
हनुमान जी तुरंत पाताल लोक पहुंचे और द्वार पर रक्षक के रूप में तैनात मकरध्वज से युद्घ कर उसे परास्त किया. जब हनुमानजी पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम और लक्ष्मण बंधक अवस्था में थे.
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हनुमान ने देखा कि वहां चार दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी थी. अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना था.
रहस्य पता चलते ही हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरूड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख. सारे दीपकों को बुझाकर उन्होंने अहिरावण का अंत किया.