दो मुंहा सांप Swami Prasad Maurya, कभी डसे, कभी फुंफकारे

by Abhishek Seth
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चमड़े की जुबान से केवल हवा ही तो निकालनी है. हिन्दू विरोध अपने-आप हो जाएगा. इन जातिवादी नेताओं के जुबान से कभी चादर और फादर को लेकर कभी कुछ नहीं निकलता. क्योंकि ये जानते हैं कि उनके खिलाफ जैसे ही आवाज़ उठाएंगे, शरीर के 35 टुकड़े किसी सूटकेस में पैक मिलेंगे. गैर हिन्दुओं पर बोलते समय इनकी जुबान सूख जाती है, हाथों की नसें फट जाती हैं और शरीर का खून जम जाता है. इतना ही नहीं, गैर हिन्दुओं के खिलाफ सोचने पर भी इनके शरीर के विशेष छिद्र हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya), एक ऐसा नाम जो आजकल चर्चा में बना हुआ है. दलबदलू नेता आजकल हाईलाइट में आने के लिए विवादित बयान दे रहे हैं. इन्होंने हाईलाइट होने के लिए हिन्दू धर्म का सहारा लिया. हिन्दुओं के ग्रन्थ और उनकी परम्पराओं पर सवाल खड़े करना जैसे पुरानी परम्परा हो गई है.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने पिछले दिनों हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस के खिलाफ जहर उगला था. समाजवादी पार्टी के नेता ने कहा था कि रामचरितमानस एक बकवास ग्रंथ है. इसे जला देना चाहिए. सपा नेता ने ग्रंथ के एक दोहे ‘ढोल, गंवार, शुद्र पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’ का उदहारण देते हुए जहर वाला बीज बोया था. उन्होंने ताड़ना का अर्थ ‘अत्याचार’ प्रस्तुत किया था. जबकि इसका शुद्ध शाब्दिक अर्थ शिक्षा से है. पूरे दोहे का अर्थ महिलाओं, शूद्रों की पढ़ाई से है.

रामचरित मानस में महिलाओं को बड़े ही आदर और सम्मान से देखा गया है. हालांकि हमें यहां स्वामी के आरोपों पर रामचरित मानस के प्रति स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं है. ये दोगली नीति केवल सपा के नेताओं में ही है कि जहां इसके नेता एक ओर रामचरितमानस को बकवास बताते हैं. वहीँ इसके रचयिता तुलसी के आंगन संकटमोचन मंदिर में हाजिरी लगाते हैं. रामभक्त हनुमान भी इनसे कितना खुश हुए होंगे जब इन्होने अपनी दोगली नीति दिखाते हुए अपनी राजनीति की रोटी सेकने की कोशिश की.

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रामचरितमानस की रचना स्वयं तुलसीदास ने भगवान श्रीराम एवं रामभक्त हनुमान की प्रेरणा से की थी. यह जग विदित है कि रामचरितमानस आदिकाल में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ रामायण का अनुवाद है. उसी रामचरितमानस को तुलसी के आँगन में जाकर बकवास बताया जाता है और इसके पन्ने जलाए जाते हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने रविवार को कहा कि सनातन कोई धर्म नहीं है. अब ये समझ नहीं आता कि स्वामी प्रसाद मौर्य कौन से यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए हैं. क्योंकि इनके बयानों से तो लगता है कि ये 5वीं तक भी नहीं पढ़े हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सनातन को मुस्लिम से भी जोड़ने पर बल दिया. उन्होंने मदनी के दिए हुआ बयान ‘इस्लाम ही सनातन है’ का समर्थन किया. जबकि ये बुद्ध को ही मानते हैं. भगवान बुद्ध ने कहा था, “असो धम्म: सनातन:’. यानि हमारा धर्म ही सनातन है. भगवान बुद्ध ने सनातन धर्म का समर्थन किया था. साथ ही बुद्ध ने जिस भाषा में यह कहा, वह भाषा संस्कृत है. जो कि सनातनी है. इसके बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य सनातन पर प्रश्न कड़े करते हैं, तो उन्हें शर्म से मर जाना चाहिए.

चमड़े की जुबान से केवल हवा ही तो निकालनी है. हिन्दू विरोध अपने-आप हो जाएगा. इन जातिवादी नेताओं के जुबान से कभी चादर और फादर को लेकर कभी कुछ नहीं निकलता. क्योंकि ये जानते हैं कि उनके खिलाफ जैसे ही आवाज़ उठाएंगे, शरीर के 35 टुकड़े किसी सूटकेस में पैक मिलेंगे. गैर हिन्दुओं पर बोलते समय इनकी जुबान सूख जाती है, हाथों की नसें फट जाती हैं और शरीर का खून जम जाता है. इतना ही नहीं, गैर हिन्दुओं के खिलाफ सोचने पर भी इनके शरीर के विशेष छिद्र हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. जिससे इन्हें उत्सर्जन संबंधी समस्या होने लगती है.

ये वही नेता हैं, जिन्होंने टिकट को लेकर कई बार दल बदले. कभी बसपा तो कभी भाजपा, और कभी सपा से इनका नाता रहा. हालांकि दल बदलना तो इन जैसे नेताओं के जन्मजात लक्षण हैं. इसके बावजूद इन नेताओं की राजनीति में दाल नहीं गलती.

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