संत रविदास की स्मृति में राजघाट गंगा तट पर बना गुरु रविदास मंदिर सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है. इस मंदिर में रोजाना भारी संख्या में श्रद्धालु आकर गुरु की चरणों में अपना मत्था टेक कर खुद को धन्य समझते हैं. इनमें देश-विदेश के भी अनुयायी शामिल रहते हैं. गुरु रविदास मंदिर की स्थापना 12 अप्रैल 1979 में देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. जगजीवन राम ने किया था. स्व. जगजीवन राम गुरु रविदास के अनन्य भक्त व अनुयायी थे.




इस मंदिर का उद्देश्य गुरु रविदास के संदेश व उनके उपदेशों को भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रचार प्रसार करना था. उनका मानना था कि वर्ण व जाति विहीन समाज का निर्माण करना. उनका मुख्य उद्देश्य समता व समरसता का संदेश देना था. संत रविदास ने गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद की. बाबू जगजीवन राम का निधन 6 जुलाई 1986 को हो गया. इसके बाद उनकी पुत्री पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार व उनके दामाद मंजुल कुमार ने इस मंदिर के अधूरे कार्य को पूरा किया. आज उन्हीं की देखरेख में यह मंदिर चल रहा है. मंदिर के गर्भगृह में संत रविदास की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है.




मंदिर की दीवारों पर गुरु रविदास, कबीरदास, गुरु नानक, पलटू दास, मीरा बाई व नामा दास व जगजीवन दास आदि संतों की वाणियां उल्लेखित की गई हैं. मंदिर पर पांच गुंबद हैं जिन पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं बौद्ध धर्म के मंगल चिह्न अंकित हैं. मंदिर की छत पर सर्वधर्म समभाव की भावना को लेकर बाबू जगजीवन राम ने सभी धर्मों के चिह्नों को बनवाया है. दी रविदास स्मारक सोसायटी के महासचिव सतीश कुमार फगुनी राम ने बताया कि इस मंदिर में रोजाना भारी संख्या में देश-विदेश के अनुयायी आकर मत्था टेकते हैं. मंदिर की व्यवस्था के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है. रविदास जयंती पर हजारों की संख्या में देश विदेश से अनुयायी आते हैं.
पंजाब से काशी आए हरप्रीत सिंह ने कहा, “वे हर साल रविदास जयंती पर अपने परिवार के साथ संत शिरोमणि गुरु रविदास मंदिर दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर की छटा देख और संत रविदास के दर्शन कर मन भक्ति विभोर हो जाता है.” वहीँ हेमंत नाम के एक और श्रद्धालु ने कहा कि पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के चलते दर्शन के लिए नहीं आ पा रहे थे. इस बार वे उन्होंने रविदास जयंती के दिन संत रविदास के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ.