बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी अपने आप में अद्भुत है. प्राचीन काल से ही यह नगरी कई ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताएं अपने भीतर समेटे हुए है. एक ओर राजनैतिक पार्टियों की नजर सबसे पहले यहीं पर पड़ती है, तो दूसरी ओर मोक्षदायिनी मां गंगा और मणिकर्णिका घाट भी यहीं पर है. कभी भगवान विष्णु और महादेव का यहां से अद्भुत नाता रहा, तो कबीर और राजा हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी भी यहीं पैदा हुए. इतना ही नहीं, मायानगरी मुम्बई के लोगों ने भी कई बार यहां पर डेरा डाला. दादा साहब फाल्के जब सबसे पहले कैमरा लेकर काशी में आए, तो उन्होंने फ़िल्म बनाई “राजा हरिश्चंद्र”. आज के तारीख की बात करें तो काशी का डंका विश्व भर में बजता है. यहां का खान – पान, रहन-सहन, वेशभूषा सबसे अलग है. बनारसी पान और बनारसी चाट के तो क्या कहने !


प्रकृति भी देती है साथ
वहीं सर्दी के दिनों में गली के नुक्कड़ पर एक और चीज़ के लिए लोग लालायित रहते हैं. वह है – “मलइयो”. जी हां ! काशी का मलइयो विश्व भर में प्रसिद्ध है. मलइयो में काफी कुछ ऐसा है जो इसे खास बना देता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसे बनाने में प्रकृति का काफी योगदान होता है. ये ओस की बूंदों से बनाई जाती है. सर्दी की शुरुआत हो रही है. इसलिए बनारसी मलइयो का जिक्र होना लाजमी है.


स्वाद के साथ सेहत के लिए भी फायदेमंद
अक्टूबर से या मार्च तक कई गलियों के नुक्कड़ों पर आपको यह मिल जाएगा. मिट्टी के कुल्हड़ में झागदार हल्का पीला दूध जैसा यह नजर आता है. इसका स्वाद लेने के लिए दूर दूर से सैलानी आते हैं. बनारसी मलइयो स्वाद के लिए ही नहीं सेहत के लिए भी फायदेमंद है. आयुर्वेद में जिक्र है कि ओस की बूंदों में कई प्रकार के मिनरल्स होते हैं. जो आंखों की रोशनी बढ़ाने के साथ त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते हैं. अंकित मिष्ठान भंडार के ओनर रमेश यादव बताते हैं कि इसमें बादाम समेत कई प्रकार के मेवा होने के साथ यह जाड़े में गर्मी के साथ ही स्फूर्ति प्रदान करता है.
ओस की बूंदों से होता है तैयार
चौखंभा के श्री जी दुकान के मालिक गणेश यादव के अनुसार, इसे बनाने का तरीका भी मलइयो को खास बनाता है. कच्चे दूध को अच्छे से उबालकर खुले आसमान के नीचे रख दिया जाता है. जिसके बाद सर्दियों की ओस की बूंदों से इसमें झाग उत्पन्न हो जाता है. सुबह इसे केसर, इलायची, दूध, पिस्ता बादाम आदि डालकर बड़ी मथनी से मथा जाता है. जिसके बाद बनारसी मलइयो तैयार हो जाता है.