भारत में हिन्दू मंदिरों पर हुए आक्रमण किसी से छुपे नहीं हैं. मंगोंलो-मुगलों-अंग्रेजों आदि ने बारी-बारी से हिन्दू आस्था पर प्रहार (Aurangzeb The Destroyer) किया. हाल के दिनों में काशी विश्वनाथ प्रांगण स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर को लेकर बवाल मचा हुआ है. जिसे काफी दिनों तक ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता रहा है, आज भी गूगल (Google) पर ज्ञानवापी (Gyanvapi) सर्च करने पर मंदिर पर कब्जा किए मस्जिद की ही तस्वीर समाने आती है. इसी मुद्दे पर न्यायलय में बहस भी छिड़ी हुई है. एक ओर जहां हिन्दू पक्ष इसे मंदिर साबित करने में लगा हुआ है. वहीँ दूसरी ओर वामपंथी और इस्लामी विचारधारा ग्रसित लोग इसे मस्जिद साबित करने में कोई कसर बाकि नहीं छोड़ना चाहते. लेकिन हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि ‘सत्य को प्रमाण को आवश्यकता नहीं होती’ सत्य कितना भी कमजोर क्यों न हो, पराजित नहीं हो सकता. तभी तो महादेव की कृपा से आए दिन हिन्दुओं के पक्ष में कोई न कोई सबूत स्वत: ही कोर्ट में पेश किए जा रहे हैं.


2 दिसम्बर, 1669 का वह काला दिन, जब मुग़ल आक्रान्ता औरंगजेब के फरमान पर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया गया और उसके जगह एक विवादित ढांचा खड़ा कर दिया गया. जिसे मस्जिद का नाम दिया गया. उससे पहले अकबर के समय राजस्व मंत्री रहे राजा टोडरमल ने नारायण भट्ट नामक साधु के कहने पर इसे बनवाया था. औरंगजेब के समय ही शिवलिंग को ज्ञानवापी में डाल दिया गया था.
बताया जाता है कि जिस समय मंदिर को ध्वस्त किया गया, तब वहाँ के मुख्य पुजारी ने जल्दी-जल्दी में प्रतिमाओं को बचाने के लिए कुएँ (ज्ञानवापी) में समाहित कर दिया. साथ ही शिवलिंग को भी उसमें ही स्थापित कर दिया. इसके बाद से ही ज्ञानवापी हिन्दुओं की श्रद्धा का और बड़ा केंद्र बन गया. मंदिर को पूरा ध्वस्त न करते हुए औरंगजेब ने उसके ऊपर मस्जिद के गुंबद उठवा दिए. गर्भगृह को मस्जिद का दालान बना दिया गया.
शिखर को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया गया. मंदिर के अधिकतर द्वार बंद कर दिए गए. इतिहासकार मीनाक्षी जैन की पुस्तक ‘Flight Of Deities And Rebirth Of Temples’ के अनुसार, औरंगजेब ने होली और दीवाली जैसे त्योहारों को प्रतिबंधित करने के अलावा हिन्दुओं को यमुना के किनारे अंतिम संस्कार पर भी रोक लगा दिया था. उसने केशव देव मंदिर को ध्वस्त करने के भी आदेश दिए. फिर वहाँ शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दिया गया.
मीनाक्षी जैन की किताब में वाराणसी के अन्य मंदिरों का भी वर्णन मिलता है. वाराणसी का केदार मंदिर, जिन्हें विश्वेश्वर का बड़ा भाई मान कर पूजा की जाती थी और ये काशी का सबसे प्राचीन शिवलिंग है. स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित था कि जब औरंगजेब की फ़ौज ने नंदी की प्रतिमा को तबाह किया तो उनके गर्दन से खून टपकने लगा, जिसके बाद वो वहाँ से डर के मारे भाग खड़े हुए. औरंगजेब के समय बनारस में कृत्तिवासेश्वर, ओंकार महादेव, मध्यमेश्वर, विश्वेश्वर, बिंदु माधव और काल भैरव समेत अनगिनत मंदिर ध्वस्त कर दिए गए.
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उस समय वाराणसी में रह रहे विदेशी यात्रियों ने भी अपने संस्मरण में लिखा है कि पुरातन काल के मंदिरों को मुस्लिम शासन ने ध्वस्त कर के मस्जिद और दरगाहों में बदल दिया. हालाँकि, औरंगजेब की फ़ौज को इस मंदिर को ध्वस्त करने से पहले दशनामी साधुओं से युद्ध लड़ना पड़ा. अखाड़ों के साधुओं ने हथियारों का प्रशिक्षण लिया था और वो मुग़ल फ़ौज का सामना करने निकले.
‘अखाड़ा’ नाम से ही पता चलता है कि वहाँ पहलवानी और युद्धकालाओं का प्रशिक्षण मिलता रहा होगा. जानबूझ कर मंदिर की दीवारों पर ही मस्जिद बना दिया गया, लेकिन इसका नाम ‘ज्ञानवापी’ ही रह गया. ये नाम किसी भी मुस्लिम साहित्य में नहीं मिलता, सनातनी ग्रंथों में जरूर इसका जिक्र है. इसी ध्वस्तीकरण के बाद ज्ञानवापी के दक्षिण की तरफ शिवलिंग की स्थापना की गई. वहाँ कोई मंदिर नहीं बनाया गया और हिन्दू चुपचाप गुप्त रूप से भगवान शिव की पूजा करते थे, ताकि मुगलों को इसके बारे में पता न चल जाए.
कुछ दस्तावेजों से पता चलता है कि रेवा के महाराज भाव सिंह, उदयपुर के जगत सिंह, और रेवा के अनिरुद्ध सिंह अलग-अलग वर्षों में यहाँ पूजा करने पहुँचे. सन् 1734 में उदयपुर के महाराज जवान सिंह ने विश्वेश्वर के नजदीक ही एक शिवलिंग की स्थापना की, जो जवानेश्वर कहलाया. उदयपुर के महाराज संग्राम सिंह और असी सिंह भी यहाँ पहुँचे. अंत में अहिल्याबाई होल्कर ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया, जिनकी प्रतिमा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में भी लगाई गई है.
Maratha Queen Ahilyabai Holkar had reconstructed the temple in the year 1780 after surviving vicissitudes of centuries
— Tejasvi Surya (@Tejasvi_Surya) December 13, 2021
After 240+ years PM Modi undertook the pious endeavor to revive Kashi with the blessings of Baba
2/7#KashiVishwanathDham#DivyaKashiBhavyaKashi pic.twitter.com/8UHbDmEcun
इसमें से अधिकतर मंदिर ऐसे भी थे, जिसे हिन्दुओं के लिए बंद कर दिया गया और वहां पर मस्जिद बना दिया गया. काशी के कृतिवासेश्वर मंदिर का एक हिस्सा आज भी मस्जिद के कैद में है. कुछ हिन्दू अभी भी पिछले दरवाजे से महादेव की पूजा अर्चना के लिए जाते हैं. बाकि जो लोग इस मंदिर के बारे में नहीं जानते, वे मुख्य मंदिर के छोटे से हिस्से में महादेव की पूजा अर्चना करके वापस लौट जाते हैं.
केवल कृतिवासेश्वर या ज्ञानवापी नहीं, बल्कि काशी के पंचगंगा घाट पर स्थित बिंदु माधव के मंदिर पर भी औरंगजेब की नजर पड़ी. जिसके बाद उसने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कराकर वहां भव्य मस्जिद बनवाया. जिसे धरहरा (मस्जिद) का नाम दिया गया. इसके दोनों गुम्बदों पर चढकर पूरे शहर का दर्शन किया जा सकता है. पुरनिये बताते हैं कि कभी यहां पर चैतन्य महाप्रभु आकर निवास करते थे. इसके अलावा काशी के महान संतों में से एक रामानंद का आश्रम आज भी यहां पर स्थित है. हिन्दुओं ने बिंदु माधव मंदिर के याद में मस्जिद का नाम ‘बिंदु माधव का धरहरा’ रख दिया था. जिसे इतिहास याद रखेगा कि मंदिर को तोडकर मस्जिद बनाई गई है. कालान्तर में किसी ट्रस्ट ने मस्जिद के बगल में ही वर्तमान बिंदु माधव के मंदिर का निर्माण कराया. भक्ति संतों के प्रयासों और आम लोगों की श्रद्धा ने हिन्दुओं को मानसिक रूप से मजबूत रखा और वो अपने धर्म से जुड़े रहे.
हम जानते हैं कि कैसे तुलसीदास ने वाराणसी में रह कर ही ‘रामचरितमानस’ की रचना की और वहाँ एक शिवलिंग समेत भगवान हनुमान के 4 मंदिरों की स्थापना की, जिनमें संकटमोचन प्रमुख है. हालाँकि, औरंगजेब की मौत के साथ ही वाराणसी में मजहबी आक्रांताओं के हमलों का भी अंत हो गया. इसके बाद मराठा शक्ति का उदय हुआ, जिसके रहते यहाँ कोई गड़बड़ी नहीं हुई. फिर अंग्रेज आए और उनके शासनकाल के बाद भारत आज़ाद हुआ.
ज्ञानवापी मंदिर को पूरा इसीलिए नहीं तोड़ा गया था, ताकि आने वाले समय तक हिन्दू इसे देख कर इस क्रूरता को याद कर के डरते रहें. फ़ारसी साहित्य में ज्ञानवापी ध्वस्तीकरण पर एक रोचक प्रसंग मिलता है. औरंगजेब के दरबार में एक कवि था, जिसका कहना था कि वो ब्राह्मण है और 100 बार काबा जाने के बावजूद ब्राह्मण ही रहेगा. उसका कहना था कि उसका हृदय ‘कुफ्र’ से इतना मोहित है कि सौ बार काबा फर्क भी ब्राह्मण ही लौटेगा.
James Princep on #Kashi. He describes in detail how both the Bindu Madhav and Kashi Vishweshwar temples were destroyed by Aurangzeb and what the original plan of the temple was like #GyanvapiMandir pic.twitter.com/dm6zXGJmIz
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) May 20, 2022
बता दें कि हिन्दुओं को इस्लामी कट्टरपंथी और आक्रांता ‘कुफ्र करने वाला’, अर्थात ‘काफिर’ कहते रहे हैं. ‘बरहमन’ नाम से लेखन कार्य करने वाले उस कवि चंद्रभान से औरंगजेब ने जब पूछा कि क्या काशी में मंदिर ध्वस्त किए जाने और उस पर मस्जिद बनाए जाने पर वो कुछ कहना चाहेगा, तो उसने लिखा, “ऐ शेख, मेरे मंदिर की ये चमत्कारिक महानता तो देख कि यहाँ तुम्हारा खुदा भी तभी आया जब ये बर्बाद हुआ.” कहा जाता है कि बूढ़े कवि की इस बात पर बादशाह चुप रहा. कुबेर नाथ शुक्ल ने ‘Varanasi Down The Ages’ पुस्तक में इसका जिक्र किया है.
चन्द्रभान शाहजहाँ के समय से ही मुगलों के दरबार में हुआ करता था और उसके पिता भी मुग़ल शासन में एक अधिकारी हुआ करते थे. उसे पता था कि काशी को लेकर हिन्दू क्या सोचते हैं, उनकी क्या श्रद्धा है. विश्वनाथ मंदिर, जिसे बाद में टोडरमल ने बनवाया था, वो भी भव्य था. 124 फ़ीट के प्रत्येक साइड वाले वर्ग की आकृति में वो मंदिर बना था, जिसके बीच में गर्भगृह था. चारों तरफ 16*10 के मंडप थे. चारों कोने पर बाहर अलग से चार मंडप और छोटे-छोटे मंदिर थे.