- 20 वर्ष छोटी साधना को दे बैठे थे दिल
- वर्षों तक दुनिया से छुपाई थी सच्चाई
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (mualayam singh yadav) उत्तर प्रदेश की राजनीति में साड़ियों तक याद किये जाएंगे. वैसे तो मुलायम सिंह यादव के जीवन और उनके व्यक्तित्व से जुड़ी ढेरों कहानियां हैं. लेकिन आज हम उनके प्रेम की कहानी को आपको बताएंगे.
मुलायम पर फ़िदा थी लड़कियां
जब अखिलेश यादव मात्र 9 साल के थे. उन्हें ‘राजनीति’ का ‘र’ या ‘मोहब्बत’ का ‘म’ नहीं पता था. मुलायम सिंह यादव तब 43 साल के जवान थे. जनता और लड़कियां जिनके पर्सनालिटी पर फ़िदा हुआ करती थीं. 43 वर्षीय मुलायम की मूंछें काली थी. लाइफस्टाइल मैगजीन की रिसर्च बताती है कि इंडिया के मर्द 35 से 45 साल में सबसे ज्यादा आकर्षक दिखते हैं.
40 वर्ष पहले का फ्लैशबैक
देश में उस समय कांग्रेस टूट रही थी. यूपी में पिछड़ा वर्ग, खासकर यादवों का दबदबा बढ़ रहा था. उन्हें उनके नेता जी मिल गए थे. तब नेता जी की पार्टी समाजवादी न होकर राष्ट्रीय लोकदल थी. यूपी के ओरैया जिले के रहने वाले कमलापति की 23 वर्षीय बेटी स्वीट सी दिखने वाली बेटी नर्सिंग की ट्रेनिंग कर रही थी. उसे राजनीति से अत्यधिक लगाव था. इसलिए वह कुछ राजनितिक कार्यक्रमों में आई. उसी दौरान विवाहित मुलायम सिंह यादव की उस लड़की से नैना लड़ने लगे. उस लड़की का नाम है – साधना गुप्ता. तब क्या क्या हुआ और क्या क्या नहीं, यह बात मुलायम और साधना के अलावा केवल एक ही व्यक्ति बता सकता था. वह व्यक्ति थे – अमर सिंह. जो कि अब इस दुनिया में नहीं रहे.


मां के वजह से करीब आए मुलायम-साधना
अखिलेश यादव की बायोग्राफी ‘बदलाव की लहर’ में राइटर सुनीता ऐरोन ने कुछ पन्ने ‘मुलायम की लव स्टोरी’ पर भी खर्च किए हैं. उन्होंने लिखा है – “मुलायम की मां मूर्ति देवी बीमार रहती थीं. उन्हीं की वजह से मुलायम और साधना की नजदीकियां बढीं. साधना ने लखनऊ के एक नर्सिंग होम और बाद में सैफई मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मुलायम की मां की खूब देखभाल की.”
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सुनीता ऐरोन की किताब के अनुसार, “मेडिकल कॉलेज में एक नर्स मूर्ति देवी को गलत इंजेक्शन लगाने जा रही थी. उस समय साधना वहां मौजूद थीं और उन्होंने नर्स को ऐसा करने से रोक दिया. साधना की वजह से ही मूर्ति देवी की जिंदगी बची थी. मुलायम इसी बात से इम्प्रेस हुए और दोनों की रिलेशनशिप शुरू हो गई. तब अखिलेश यादव स्कूल में स्टूडेंट थे.” दरअसल, साधना खुद नर्स रही हैं. उन्होंने शुरुआती दिनों में कुछ दिनों तक नर्सिंग होम में काम भी किया है. इसलिए उन्हें इंजेक्शन का आइडिया था.
अमर सिंह ने छुपा दी थी मुलायम के प्रेम की कहानी केवल
मुलायम की प्रेम कहानी केवल अमर सिंह ही जानते थे. वे ही यह बात जानते थे कि मुलायम को प्यार हो गया है. उन्होंने किसी से कुछ कहा नहीं. कहते भी तो किस मुंह से, घर में पत्नी मालती देवी और बेटे अखिलेश थे.


1988 के तीन कारनामे
वर्ष 1988 में जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बनने के कगार पर खड़े थे. उसी समय साधना मुलायम के साथ रहने की योजना बनाने लगी थीं. वे अपने पति चंद्रप्रकाश गुप्ता से अलग रहने लगी थीं. उनके गोद में एक बच्चा था. मुलायम ने अखिलेश को साधना से मिला दिया.
जब अखिलेश को साधना ने मारा थप्पड़
नेहा दीक्षित की मैगज़ीन ‘कारवां’ में लेखिका ने बिना नाम छापे परिवार के खास लोगों के हवाले से लिखा, ‘साल 1988 में पहली बार मुलायम ने ही, अखिलेश को साधना गुप्ता से मिलवाया. तब वो 15 साल के थे. उसी वक्त अखिलेश को साधना अच्छी नहीं लगीं. एक बार तो साधना ने उन्हें थप्पड़ मार दिया. कुछ समय बाद उन्हें पढ़ाई के लिए पहले इटावा, फिर धौलपुर राजस्थान भेज दिया.
विश्वनाथ चतुर्वेदी की कहानी में अजीब किस्म के कैरेक्टर हैं. दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, इन्होंने कुछ ज्यादा तो नहीं किया. बस मुलायम की जिंदगी के जितने पन्ने दबे थे, उन्हें उखड़वा डाले. इन्होंने मुलायम के खिलाफ 2 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया. पूछा कि 1979 में 79 हजार रुपए की संपत्ति वाला समाजवादी करोड़ों का मालिक कैसे बन गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा, CBI, मुलायम की जांच करो.
जांच शुरू हुई. 2007 तक पुराने पन्ने खंगाले गए, नई रिपोर्ट लिखी गई. उनमें ये सब लिखा गया-
- मुलायम की एक और बीवी और एक और बच्चा भी है.
- आज से नहीं 1994 से.
- 1994 में प्रतीक गुप्ता ने स्कूल के फॉर्म में अपने परमानेंट रेसिडेंस में मुलायम सिंह का ऑफिशियल एड्रेस लिखा था.
- मां का नाम साधना गुप्ता और पिता का एमएस यादव लिखा था.
- 2000 में प्रतीक के गार्जियन के तौर पर मुलायम का नाम दर्ज हुआ था.
- 23 मई 2003 को मुलायम ने साधना को अपनी पत्नी का दर्जा दिया था.
सच तो ये है कि सही तरीके से साधना मुलायम की जिंदगी में आईं 1988 में और 1989 में मुलायम UP के CM बन गए. तब से वह साधना को लकी मानने लगे. पूरे परिवार को यह बात पता थी. कहता कोई नहीं था. अब जब सब कुछ सामने आ ही रहा था तब 2007 में मुलायम ने अपने खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति वाले केस में सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र दिया.
इसमें लिखा था-
मैं स्वीकार करता हूं कि साधना गुप्ता मेरी पत्नी और प्रतीक मेरा बेटा है.
अब डर जगा कि समाजवादी पार्टी का एक और उत्तराधिकारी पैदा हो गया, लेकिन कहानी यहां भी खत्म नहीं होती-
अखिलेश अपने पिता से काफी नाराज थे. मुलायम ने अकेले लड़ाई करके विधानसभा चुनाव 2012 जीता और गद्दी दे दी- अखिलेश यादव को. बोले, “ले बेटा संभाल.” 19 जनवरी को जब उसी साधना की बहू अपर्णा यादव ने BJP का झंडा थामा तो लोगों ने पूछा, ‘क्या अखिलेश, संभाल नहीं पा रहे हैं.’ फिलहाल वह इतना कहकर निकल गए कि उन्हें शुभकामनाएं.


अब साधना और मुलायम दोनों ही इस दुनिया में नहीं हैं.