देश में चल रहे तुलसीदास, रामचरितमानस, ब्राह्मण, शुद्र, ये सारे विवाद केवल राजनीतिक हैं. आम और भोली-भाली जनता इसकी शिकार हो रही है. आपस में क्लेश उत्पन्न करने और कराने का कारण केवल राजनीतिक स्वार्थपरता है. यह बहुत बड़ा झूठ हैं जिसको बोला जा रहा है.
दरअसल किसी ने वेद और शास्त्र का अध्ययन किया ही नहीं है. वेदों में कहीं भी संकीर्णता नहीं है. वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं बल्कि कर्म से बनी है. इसको लेकर सारे शास्त्रों के प्रमाण नीचे दिए गए हैं. अगर इसके कोई सही से समझ ले तो आसानी से-तुलसीदास की चौपाई भी समझ आ जाएगी और उनकी सोच भी. वैसे मेरा मानना है कि मैं दिमाग से ब्राह्मण हूं, भुजाओं से क्षत्रिय,पेट से वैश्य हूं और पैरों से शूद्र हूं. जाति-पाति के नाम पर देश को तोड़ना अधर्म है सबके मूल में वह परम् ब्रह्म निवास करता है, मृत्यु शैया किसी की जाति नहीं पूछती एक ही विधि से इस नश्वर शरीर को भष्म करती है और एक ही प्रकार से जन्म देती है.
1- वेदों में वर्ण व्यवस्था
(क)-(ऋग्वेद संहिता, मण्डल 10, सूक्त 90, ऋचा 12)
ब्राह्मणोंस्य मुखमासीद बाहु राज्यन्य कृतः
उरू तद्वैश्य पदभ्यां गूं शुद्रो अजायत.
अर्थात- ऋग्वेद की ऋचा का अर्थ यों समझा जा सकता है-सृष्टि के मूल उस परम ब्रह्म का मुख ब्राह्ण था, बाहु क्षत्रिय, उसकी जंघाएं वैश्य और पैरों शूद्र हैं. इस अर्थ का अनर्थ यह किया गया कि ब्रह्मा के पैर से शुद्र और सिर से ब्राह्मण का जन्म हुआ. ऐसा नहीं है.दरअसल इस श्लोक को कोई न पढ़ा न समझ पाया.
2- भगवद्गीता वर्ण व्यवस्था प्रणाम
गुण-कर्म के आधार पर विभाजन गीता में भगवान कहते हैं-
(क) चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: .
तस्य कर्त्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्
(गीता 4/13 )
अर्थात् ‘‘गुणों और कर्मों के आधार पर चार वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की रचना मेरे द्वारा ही की गई है. यद्यपि मैं उनका रचयिता हॅ, तथापि तू मुझे अविनाशी परमेश्वर को वास्तव में अकर्ता और अपरिवर्तनशील ही जान.’’
(ख) गीता के श्लोक 18/41 में –
ब्राम्हण क्षत्रिय विन्षा शुद्राणच परतपः.
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवे गुणिः ॥
अर्थात- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा विभक्त किये गये हैं न कि जन्म के अनुसार!!
3- महाभारत वर्ण व्यवस्था प्रमाण
(क) ब्राह्मणी_के गर्भ से उत्पन्न होने से, संस्कार से, वेद श्रवण से अथवा ब्राह्मण पिता कि संतान होने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता अपितु सदाचार से ही मनुष्य ब्राह्मण बनता है.
[महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 143]
(ख) जो ब्राह्मण दुष्ट कर्म करता है, वो दम्भी पापी और अज्ञानी है उसे शुद्र समझना चाहिए. और जो शुद्र सत्य और धर्म में स्थित है उसे ब्राह्मण समझना चाहिए.
[महाभारत वन पर्व अध्याय 216/14]
(ग) कोई भी मनुष्य कुल और जाति के कारण ब्राह्मण नहीं हो सकता. यदि चंडाल भी सदाचारी है तो ब्राह्मण है.
[महाभारत अनुशासन पर्व (अध्याय 226)
(3) पुराणों में वर्ण व्यवस्था प्रमाण
(क) भविष्य पुराण-
शुद्र यदि ज्ञान सम्पन्न हो तो वह ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ है और आचार भ्रष्ट ब्राह्मण शुद्र से भी नीच है.
[भविष्य पुराण अध्याय 44/33]
(ख) कूर्म पुराण में शुद्र कि वेदों का विद्वान बनने का वर्णन इस प्रकार से मिलता है-
वत्सर के नैध्रुव तथा रेभ्य दो पुत्र हुए तथा रेभ्य वेदों के पारंगत विद्वान शुद्र पुत्र हुए. [कूर्मपुराण अध्याय 19]
(4) महर्षि गौतम – न्याय दर्शन प्रमाण
(क) महर्षि गौतम न्यायशास्त्र में कहते हैं-“समानप्रसवात्मिका जाति:” -न्याय दर्शन [2/2/71]
अर्थात–जिनके प्रसव अर्थात जन्म का मूल सामान हो अथवा जिनकी उत्पत्ति का प्रकार एक जैसा हो वह एक जाति कहलाते है.


(ख) महर्षि गौतम पुनः दूसरे सूत्र में लिखे हैं-
“आकृतिर्जातिलिङ्गाख्या”- न्याय दर्शन[2/2/65]
—अर्थात जिन व्यक्तियों कि आकृति (इन्द्रियादि) एक समान है, उन सबकी एक जाति है.
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(5) मनु स्मृति प्रमाण
(क) महर्षि मनु कहते हैं-
“अनभ्यासेन वेदानामाचारस्य च वर्जनात् ..
आलस्यात् अन्न दोषाच्च मृत्युर्विंप्रान् जिघांसति॥”
अर्थात- वेदों का अभ्यास न करने से, आचार छोड़ देने से, कुधान्य खाने से ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है ..
(ग) महर्षि मनु कहते हैैं
“जन्मना जायते शूद्रःसंस्कारात् भवेत् द्विजः ..
वेद-पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः” ..
अर्थ–जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज अर्थात ब्रह्मण बन जाता है.
(6) गृह सूत्र वर्ण व्यवस्था प्रमाण
शूद्रों के पठन पाठन के विषय में लिखा है कि दुष्ट कर्म न करने वाले का उपनयन अर्थात (विद्या ग्रहण) करना चाहिए. [गृहसूत्र कांड 2 हरिहर भाष्य].
(7)-स्वामी विवेकानंद जी वर्ण व्यवस्था प्रमाण
’’ ऐसा व्यक्ति जिसमें सात्त्विक भावनाएं प्रबल हों, ब्राह्मण कहलाता है . इस श्रेणी में भावनाशील, बुद्धिजीवी, विचारक, वैज्ञानिक और अन्वेष्क आते हैं.’’
रजोगुण गतिशीलता-सक्रियता का प्रतीक है. जब यह प्रधान हो, तमोगुण पर्याप्त हा किन्तु सत्वगुण न्यून हो, तो उन्हें वैश्य कहा जाता हैं. इनमें व्यापारी आदि आ जाते हैं.
मंद और निम्न वासनाओं की प्रबलता तामसिक गुणों में गिनी जाती हैं. जब तमोगुण की प्रधानता हो, तो शूद्र कहे जाते हैं. इनमें कारीगर, मजदूर, श्रमिक आदि आते हैं. जब रजोगुण प्रधान, सत्वगुण पर्याप्त एवं तमोगुण न्यून हों, तो उन्हें क्षत्रिय कहा जाता है. इनमें कर्मठ सक्रिय लोग, राजनीतिज्ञ आदि आते हैं.
(7) महर्षि दयानंद का वर्णव्यवस्था प्रमाण
महर्षि दयानन्द अपने ही नही सबके मोक्ष की चिंता करनेवाले थे.किसी जाति-सम्प्रदाय वर्ग विशेष के लिए नहीं,अपितु सारे संसार के उपकार के लिए उन्होंने आर्यसमाज की स्थापना की थी.
सन् 1880 में काशी में एक दिन एक मनुष्य ने वर्ण व्यवस्था को जन्मगत सिद्ध करने के उद्देश्य से महाभाष्य का निम्न श्लोक प्रस्तुत कियाः-
विद्या तपश्च योनिश्च एतद् ब्राह्मण कारकम्.
विद्या तपोभ्यां यो हीनो जाति ब्राह्मण एव सः.. 4/1/48..
अर्थात् ब्राह्मणत्व के तीन कारक हैं –1) विद्या, 2) तप और 3) योनि.जो विद्या और तप से हीन है वह जात्या (जन्मना) ब्राह्मण तो है ही.
ऋषि दयानन्द ने प्रतिखंडन में मनु का यह श्लोक प्रस्तुत किया-
यथा काष्ठमयो हस्ती, यश्चा चर्ममयो मृगः.
यश्च विप्रोऽनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति..
मनु०(2,157)
अर्थात् जैसे काष्ठ का कटपुतला हाथी और चमड़े का बनाया मृग होता है,वैसे ही बिना पढ़ा हुआ ब्राह्मण होता है.उक्त हाथी,मृग और विप्र ये तीनों नाममात्र धारण करते हैं
ऋषि दयानन्द से पूर्व और विशेष रूप से मध्यकाल से ब्राह्मणों के अतिरिक्त सभी वर्णस्थ व्यक्तियों को शूद्र समझा गया था,अतः क्रमशः मुगल और आंग्ल काल में महाराष्ट्र केसरी छत्रपति शिवाजी महाराज,बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड और कोल्हापुर नरेश राजर्षि शाहू महाराज को उपनयन आदि वेदोक्त संस्कार कराने हेतु आनाकानी करनेवाले ब्राह्मणों के कारण मानसिक यातनाओं के बीहड़ जंगल से गुजरना पड़ा था.
डा. आंबेडकर ने भी स्वीकार किया है कि-
‘‘स्वामी दयानन्द द्वारा प्रतिपादित वर्णव्यवस्था बुद्धि गम्य और निरूपद्रवी है.”
डा. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के उपकुलपति,महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध वक्ता प्राचार्य शिवाजीराव भोसले जी ने अपने एक लेख में लिखा है,‘राजपथ से सुदूर दुर्गम गांव में दलित पुत्र को गोदी में बिठाकर सामने बैठी हुई सुकन्या को गायत्री मंत्र पढ़ाता हुआ एकाध नागरिक आपको दिखाई देगा तो समझ लेना वह ऋषि दयानन्द प्रणीत का अनुयायी होगा.’
(वर्ण परिवर्तन के कुछ अन्य उदाहरण)
(a) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे . परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की . ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है .
(b) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे . जुआरी और हीन चरित्र भी थे . परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये .ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया . (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(c) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए .
(d) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया . (विष्णु पुराण ४.१.१४)
अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(e) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए . पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया . (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(f) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया . (विष्णु पुराण ४.२.२)
(g) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए . (विष्णु पुराण ४.२.२)
(h) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए .
(i) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने .
(j) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए . (विष्णु पुराण ४.३.५)
(k) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया . (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए. इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं .
(l) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने .
(m) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना .
(n राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ .
(o) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे .
(p) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया . विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया .
(q) विदुर दासी पुत्र थे . तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया .
(r) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९) .
(s) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है कि कुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं . वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं . इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश .
(t) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर.
(u) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं . इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एक ही कुल की संतान हैं . लेकिन कालांतर विदेशी आक्रमणकारियों के कारण वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए .
अगर अभी भी किसी के मन में वर्ण व्यवस्था को लेकर शंका हो तो इस लेख को शास्त्रों से मिला लेना चाहिए.
धन्यवाद
अमरेंद्र पांडेय
(लेखक यूपी के चंदौली में वरिष्ठ पत्रकार हैं)