भारतीय इतिहास को खंगालने पर हिन्दुओं की कई शौर्य भरी गाथाएं मिलती हैं. भले ही इतिहास की किताबों में हमें मुगलों का महिमामंडन पढ़ाया गया हो, लेकिन इतिहास के पन्नों के झरोखों से हिन्दुओं की शौर्य गाथाएं खुद ब खुद सामने निकल कर आ ही जाती हैं. ऐसी ही एक शौर्य गाथा आज से ठीक 353 साल पहले रची गई थी. 4 फरवरी 1670 को मराठाओं ने हिन्दू साम्राज्य की रक्षा के लिए ‘कोंढ़ाणा किले’ भगवा ध्वज फहराकर ‘सिंहगढ़ युद्ध’ को अमर कर दिया. मराठाओं के ओर से लड़े गए इस युद्ध की अगुवाई सेनानायक तान्हाजी मालुसरे ने की थी. साथ ही मुग़लों की ओर से फ़ौज का नेतृत्व उदयभान राठौर ने किया था. इस युद्ध में तान्हाजी ने जो हिम्मत और शौर्य का परिचय दिया था, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है. कुछ समय पहले इस युद्ध पर आधारित एक फिल्म भी बनी. जिसमें अजय देवगन ने ‘तान्हा जी की भूमिका निभाई थी. जिसे देखने के बाद दर्शकों ने अभिनेता अजय देवगन के अभियान को खूब सराहा. इतिहास को बिना तोड़े मरोड़े पेश करने के लिए दर्शकों ने फिल्म के निर्देशक का भी धन्यवाद किया.
तान्हा जी ने जो किया, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गए. वे हिन्दुओं के लिए एक आदर्श के रूप में स्थापित हो गए. बरसात में पुणे के सिंहगढ़ किले का नजारा कुछ अलग ही होता है. इस किले पर लाखों टूरिस्ट कोहरा और बरसात का लुत्फ उठाने के लिए पहुंचते हैं. साल भर यहां टूरिस्ट की भीड़ रहती है. इस किले को ‘कोंढाणा’ नाम से जाना जाता था. शिवाजी महाराज के सरदार तान्हाजी मालुसरे ने अपने बेटे की शादी छोड़ लड़ाई लड़ी थी. उन्होंने कहा था-
पहले कोंढाणा दुर्ग का विवाह होगा, बाद में पुत्र का विवाह. यदि मैं जीवित रहा तो युद्ध से लौटकर विवाह का प्रबंध करूँगा. यदि मैं युद्ध में काम आया तो शिवाजी महाराज हमारे पुत्र का विवाह करेंगे.”
इसमें उनका निधन होने के बाद शिवाजी ने उन्हें शेर कहा था, और किले को भी सिंहगढ़ नाम दिया था.” इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने ये खबर सुनकर कहा था, “गढ़ आला पण सिंह गेला” अर्थात ‘गढ़ तो हाथ में आया, परंतु मेरा सिंह (तान्हा जी) चला गया.’ उसी दिन से कोंढाणा दुर्ग का नाम ‘सिंहगढ़’ हो गया.


तान्हा जी द्वारा लड़ा गया ये युद्ध आम नहीं था. क्योंकि ये किला लगभग 4,304 फुट की ऊँचाई पर स्थित है. जिस तक पहुँचने के लिए तान्हा जी ने यशवंती नामक गोह प्रजाति की छिपकली का प्रयोग किया था.
छिपकली मर गई लेकिन पकड़ नहीं छोड़ी
बता दें कि देर रात किले पर चढ़ाई करने के लिए तान्हा जी ने अपने बक्से से यशवंती को निकालकर, उसे कुमकुम और अक्षत से तिलक किया था और किले की दीवार की तरफ उछाल दिया किन्तु यशवंती किले की दीवार पर पकड़ न बना पाई. फिर दूसरा प्रयास किया गया लेकिन यशवंती दुबारा नीचे आ गई. जिसके बाद तान्हा जी के भाई सूर्याजी व शेलार मामा ने इसे अपशकुन समझा. मगर, तब तान्हा जी ने कहा कि अगर यशवंती इस बार भी लौट आई, तो उसका वध कर देंगे और यह कहकर दुबारा उसे दुर्ग की तरफ उछाल दिया, इस बार यशवंती ने जबरदस्त पकड़ बनाई और उससे बंधी रस्सी से एक टुकड़ी दुर्ग पर चढ़ गई. अंत मे जब यशवंती को मुक्त करना चाहा तो पता चला कि यशवंती भी भारी वजन के कारण वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी, किन्तु उसने अपनी पकड़ नही छोड़ी थी.
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Tanaji Malusare, one of #shivaji generals in 17th century. He won d Battle of Sinhagad against the Mughal army in 1670 by scaling an impregnable fort with the help of his pet monitor lizard, Yashwanti. T-series to produce #AjayDevgn -starrer ‘Taanaji The Unsung Warrior #Taanaji pic.twitter.com/yPOdhNdmIh
— Chetan Patil (@mangalorebuns) September 28, 2018
इस दौरान तान्हा जी ने लगभग 2,300 फुट चढ़ाई की थी और मात्र 342 सैनिकों के साथ अंधेरी रात में किले पर धावा बोला था. बाद में उनके भाई सूर्याजी ने भी उनका साथ दिया था. किले को जीतने के लिए तान्हा जी और उनकी सेना ने उदयभान सिंह के लगभग 5,000 मुगल सैनिकों के साथ भयंकर युद्ध लड़ा था. मगर लंबे समय तक युद्ध चलने के पश्चात तान्हा जी को उदय भान ने मार दिया था और कुछ समय बाद मराठा सैनिक ने उदयभान को मारकर सिंहगढ़ के युद्ध की विजयगाथा को अमर किया था.
Today marks the 350th anniversary of 'Battle of Sinhagad'- the near impossible mission led by Tanaji Malusare on February 4, 1670, to capture the fort of Sinhagad near Pune.
— Amit Paranjape (@aparanjape) February 3, 2020
The mission was a success, but Tanaji had to make the ultimate sacrifice – today is his 350th Punyatithi. pic.twitter.com/zU9CMM0LS6