वादे… कुछ पूरे, कुछ अधूरे… जानिए, किस हाल में है शहीद अवधेश यादव का परिवार

by Abhishek Seth
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  • पुलवामा अटैक में मिटे 40 सुहागनों के सुहाग
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चंदौली (पड़ाव संवाददाता)। 14 फरवरी 2019, इतिहास के पन्नों में हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन देश को ऐसा दर्द (Pulwama Attack) मिला था, जिसे देशवासी कभी नहीं भूलेंगे। इस दिन एक सोची समझी साजिश के तहत भारी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ (RDX) के साथ जम्मू कश्मीर के राष्ट्रीय राजमार्ग पर सेना के काफिले पर आत्मघाती हमला किया। जिसने देश को पूरी तरह झकझोर दिया।

इस घटना में भारतीय सेना में अहम भूमिका रखने वाले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 40 जवान भारत माता के वीर सपूतों ने अपने प्राण गवाए थे। आज भी उस घटना के याद कर देश में लोगों की आंखें नम हो जाती हैं घटना ने 40 जवानों के परिवार को ही नहीं पूरे देश को हिला कर रख दिया था उन 40 जवानों में एक चंदौली का लाल शहीद अवधेश यादव भी शहीद हो गया। 

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इस घटना के बाद शहीद के परिवार वालों को सेना द्वारा जो भी शहीद के परिवार हेतु सुविधाएं व आर्थिक मदद दी जाती है, वह सभी तत्काल प्रभाव से शहीद के पिता व पत्नी को दी गईं। शहीद अवधेश के पिता हरकेश यादव ने बताया कि अवधेश की पत्नी शिल्पी यादव को राजस्व विभाग में नौकरी मिली, जो कि आज वर्तमान में चंदौली के जिलाधिकारी कार्यालय में कार्यरत है। वह अपने बेटे अखिल कुमार जो कि अब 5 वर्ष का हो चुका है, का भरण पोषण कर रही है। 

शहीद अवधेश यादव को श्रद्धांजली देते उनके पिता व उनका पुत्र

लंबी बीमारी के बाद मां का निधन

वहीं शहीद की मां मालती देवी जो पूर्व से गंभीर बीमारी कैंसर से पीड़ित थी। उनका दो वर्ष पूर्व 25 जनवरी 2021 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। छोटे भाई बृजेश कुमार को भी सरकारी नौकरी का तत्कालीन अधिकारियों द्वारा किया गया था परंतु वह भी कोरा कागज ही रहा। आज शहीद का छोटा भाई प्राइवेट नौकरी के भरोसे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।

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शहीद को श्रद्धांजली देते CRPF के अधिकारी

न बनी स्टेडियम, न स्थापित हुई मूर्ति

लोगों द्वारा मांग किए जाने पर तत्कालीन जिलाधिकारी बहादुरपुर खलिहान में शहीद के नाम से मिनी स्टेडियम व एक प्रवेश द्वार शहीद के नाम से बनवाने की बात कही थी। एक  वर्ष बाद पुण्यतिथि आने पर जिलाधिकारी से इस बाबत प्रश्न किया गया। जिस पर डीएम ने बताया कि मूर्ति का ऑर्डर दिया जा चुका है। परंतु आज तक मूर्ति कोरा आश्वासन ही रहा और न ही मिनी स्टेडियम का ही कोई प्रस्ताव पारित हुआ और ना ही किसी तरह का कोई मुख्य द्वार बना। यहां तक की शासन और प्रशासन द्वारा शहीद की मूर्ति भी स्थापित न हो सकी।

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