भगवान शिव इस श्रृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं। लेकिन इससे हटकर लोगों की आस्था सर्वव्यापी ईश्वर पर न होकर उन्हें मंदिरों में ढूंढते हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे जिसकी स्थापना स्वयं भगवान शंकर ने की थी। आइए जानते हैं इस मंदिर के विशेषताओं के बारे में-
प्रयाग में है स्थित
‘प्रयाग’ एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही पूरा मन पवित्र हो जाता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, प्रयाग को भारतवर्ष के सबसे पवित्र स्थान में शामिल किया गया है। प्रयाग के कालिंदी तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग का नाम है, “मनकामेश्वर महादेव”।


मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं लोग
ऐसा कहा जाता है कि भगवान से इन्सान जो भी सच्चे मन से मांगता है, भगवान उसकी मुराद ज़रूर पूरी करते हैं। लेकिन पूर्वांचल समेत अन्य जगहों से लोग मनकामेश्वर महादेव के पास मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं।


इस तरह हुई थी स्थापना
इस मंदिर की स्थापना किस प्रकार हुई, यह बात विवादास्पद है। लेकिन इसके स्थापना के सम्बन्ध में हिन्दू धर्म अनुयायीयों के विभिन्न मत हैं। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना भगवान सूर्यदेव ने की थी। तब से यह मंदिर यही पर स्थित है।


कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस स्थान पर सतयुग में भगवान स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।


इस तरह पड़ा नाम
धर्मशास्त्रों व पुराणों के अनुसार, सती की मृत्यु के बाद भगवान शंकर कई वर्षों की तपस्या में लीन हो गए थे। उन्हें जगाने का काम देवताओं ने कामदेव को सौंपा। कामदेव ने महादेव की तपस्या में विघ्न डालकर उन्हें जगा दिया। जिससे कि शिवशंकर अत्यंत क्रोधित हुए और तुरंत अपना तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। उसके बाद भगवान शंकर स्वयं यहां आकर विराजमान हो गए थे। कामदेव को भस्म करने के कारण ही इनका नाम “मनकामेश्वर महादेव” पड़ा।


कामेश्वर और कामेश्वरी दोनों विराजते हैं एक साथ
स्कंद पुराण और प्रयाग महात्म्य के अनुसार, अक्षयवट के पश्चिम में पिशाचमोचन मंदिर के पास यमुना किनारे भगवान कामेश्वर का तीर्थ है, जिन्हें शिव का पर्याय माना जाता है। जहां शिव होते हैं, वहां निश्चित रूप से कामेश्वरी अर्थात पार्वती का भी वास होता है। इसीलिए यहां भैरव, यक्ष, किन्नर आदि गण भी विराजते हैं। कामेश्वर और कामेश्वरी का तीर्थ होने से ही यह स्थान श्रीविद्या की तांत्रिक साधना की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।


श्री राम ने भी किया था जलाभिषेक
वनवास जाते समय जब श्री राम अत्यंत थक गए थे। तब उन्होंने प्रयाग में अक्षयवट के नीचे आराम करके यहां शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। जिससे उनकी थकान दूर हुई थी तथा ऊर्जाशक्ति की प्राप्ति हुई थी। इसका उल्लेख तुलसीदास के ग्रन्थ रामचरित मानस में मिलता है।


मिलती है आर्थिक ऋणों से मुक्ति
मनकामेश्वर महादेव के इस मंदिर में सच्चे मन से 51 दिनों तक महादेव के दर्शन-पूजन से पितृ, आर्थिक व दुसरे ऋणों से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि जो एक बार यहां आता है, बिना भोलेनाथ का आशीर्वाद पाए वापस नहीं जाता। मंदिर परिसर में मनकामेश्वर के अतिरिक्त ऋणमुक्तेश्वर और सिद्धेश्वर महादेव के शिवलिंग भी हैं। यहां हनुमानजी की दक्षिणमुखी मूर्ति भी है। सावन में यहां रोजाना, विशेषकर सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।


मंगला आरती के बाद होता है श्रृंगार
मंदिर में प्रतिदिन भोर में 4 बजे भगवान शिव का अभिषेक और मंगला आरती की जाती है। इसी के साथ ही शाम को भोलेनाथ का विशेष श्रृंगार होता है। इस दौरान महादेव की सुन्दरता देखने लायक होती है।