Mahashivratri: G-20 की थीम पर काशी में निकलेगी शिव बारात, मसाने की होली संग मथुरा और वृन्दावन की भी होली

by Admin
0 comment
  • 20 देशों के ध्वज संग राष्ट्राध्यक्षों का मास्क लगा कर चलेंगे लोग

काशी के रोम-रोम में शिव हैं. यहां भक्तों की संख्या भी अपार है. महाशिवरात्रि या फिर भगवान शिव से जुड़ा कोई भी त्योहार यहां के सडकों पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. काशी में शनिवार को महाशिवरात्रि अत्यंत धूम-धाम से मनाई जाएगी.

काशी में इस बार महाशिवरात्रि खास तरीके से आयोजित होने वाली है. इस बार के अड़भंगी शिव बारात में G-20 की भी झांकी होगी. शिव बारात के अड़भंगी सरीखे 20 देशों के राष्ट्रध्यक्षों का मास्क लगा कर उन देशों का ध्वज लेकर लोग भंग-बूटी व रंग-तरंग से लबरेज रहेंगे. इसके साथ ही इन देशों के राष्ट्रध्यक्षों की बरसों की मुराद भी पूरी होगी. एशिया के 20 देशों के समूह की अध्यक्षता कर रहा भारत का इससे मान बढ़ा है.

हर कोई उत्साहित है. ऐसे में भला भोलेनाथ की बारात में वे शामिल न हो ऐसा कैसे हो सकता है. अबकी शिव बारात में फलां-फलां तो रहेंगे ही लेकिन एक झांकी ऐसी भी होगी जो लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र होगी. जी-20 सम्मेलन की तर्ज पर ही इसका नाम G-20 रखा गया है.

Also Read This: Mahashivratri: बनारसी मौज व फागुन की मस्ती लिए निकलेगी शिव बारात, पंचबदन रजत प्रतिमा का होगा दर्शन

G-20 अंतराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच

कार्यक्रम संयोजक दिलीप सिंह के अनुसार, G-20 अंतराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है. इसमें दुनिया के बीस देश शामिल हैं.  इसमें सभी तरह की आर्थिक समस्याओं पर विचार विमर्श होते हैं.

आतंकवाद, कोरोना जैसी गंभीर बीमारी जिससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है. जिसके चलते पूरी दुनिया में रोजगार, आर्थिक तंगी आज गंभीर समस्या बन चुकी है. इस शिखर सम्मेलन में इन सभी मामलों पर भी विचार होगा. सबसे बड़ी बात है कि इस अंतराष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता अपना देश भारत कर रहा है. आज देश में G-20 की चर्चा चारों ओर है, लेकिन G-20 क्या है, इसे जानने वाले बहुत कम हैं. हम झांकियों के माध्यम से इसमें शामिल होने वाले देश और G-20 क्या है इसे बताने और होने वाले फायदे को बताने का प्रयास करेंगे.

बता दें कि शिव बारात में सिर्फ देश ही नहीं सात समुंदर पार से भी लोग आते हैं. इस बार शिव बारात में उन्हें काशी की मदमस्त होली, मसाने की होली के साथ ही मथुरा और वृंदावन की होली की मस्ती भी देखने को मिलेगी.

काशी विश्वनाथ मंदिर में सोना चोरी के बाद से निकल रही है शिव बारात

काशी ऐसे तो शिव की नगरी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात है. लेकिन यह भी विचार करने वाली बात है कि शिव की नगरी में शिव बारात के पूर्व शिव के नाम पर कोई आयोजन नही था. धार्मिक और उत्सवों के शहर में भरत मिलाप, नक्कटैया, राम नगर की रामलीला, राम बारात, श्री कृष्ण लीला और नाग नाथैया जैसे लक्खी मेलों की भीड़ में बाबा शिव का उत्सव गायब था. 1983 में जब काशी विश्वनाथ मंदिर में सोना चोरी हुआ और उसकी बरामदगी हुई, तब पहली बार काशी के कुछ मानिंद लोगों ने बैठ कर उत्सव मनाने के लिए शिव बारात निकालने का निर्णय लिया. 

उस समय उसके संयोजक प्रसिद्ध अधिवक्ता स्व० केके आनंद एडवोकेट और सह संयोजक दिलीप सिंह, कमेटी में स्व धर्मशील चतुर्वेदी, स्व. सुशील त्रिपाठी पत्रकार, मुस्लिम लीग के मोहम्मद इकराम खां, कैलाश केशरी, अमिताभ भट्टाचार्य बनाए गए. ये सभी लोग संस्थापक सदस्य रहे.

पहली बार जब शिव बारात निकाली गई तो सबसे बड़ी समस्या थी कि शिवलिंग को वेदों के अनुसार बाबा को प्रवाहित नहीं किया जा सकता तो मोहम्मद इकराम खां ने सिन्नी पंखे का अरघा बना कर पहला शिवलिंग बनाया. उस समय यह भी तय हुआ कि बारात किसी जाति या धर्म की न होकर पूरे काशी की बारात होना चाहिए. इसी तर्ज पर सभी अच्छे लोगों को शिव बारात में आमंत्रित किया गया.

समाज को जोड़ने के लिए कुछ भी बनने को तैयार: बदरुद्दीन अहमद

काशी की गंगा जमुनी पहचान को कायम रखने के लिए पहले साल से ही प्रतीक रूप से दूल्हा हिन्दू और दुल्हन मुस्लिम और एक शाहबल्ला बनाया जाने लगा. शुरूआती दौर में धर्मशील दूल्हा और मोहम्मद इकराम उर्फ माई डियर दुल्हन और सांड़ बनारसी शहबल्ला बनाएं जाते रहे. दुल्हनें बदलती रहीं, माई डियर के देहांत के बाद कभी पूर्व रणजी खिलाड़ी जावेद अख्तर तो कभी अतीक अंसारी दुल्हन बने.

धर्मशील चतुर्वेदी के निधन के बाद शाहबल्ला सांड़ बनारसी की तरक्की हुई और वे अब दुल्हा बनते है. वहीँ व्यापारी नेता बदरुद्दीन अहमद दुल्हन और डैडी अमरनाथ शर्मा शाहबला. बद्रुद्दीन अहमद बताते हैं कि समाज को जोड़ने के लिए मुझे कुछ भी बनना पड़ेगा तो बनूंगा. वही असली धर्म है. हर धर्म में कहा गया है कि हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव करो.

इस तरह की बारात देश में कहीं भी नहीं निकलती: सांड बनारसी

हास्य व्यंग कवि सुदामा तिवारी उर्फ़ सांड़ बनारसी बताते हैं कि इस तरह की शिव बारात देश में कहीं भी नहीं निकलती है. यह बनारस की परम्परा है.

वैसे बनारस में कई जगहों से शिव बारात निकलती है लेकिन ऐसा सीन कहीं नहीं होता है. इस साल भी वह इसमें दूल्हा बन रहे हैं. यह शिव बारात इस देश की पहली शिव बारात है. इसकी लोकप्रियता के चलते ही आज सिर्फ बनारस में ही नही विदेश में भी शिव बारात निकाली जाने लगी है. सिर्फ इसी देश में इस समय दस हजार से ज्यादा जगहों पर शिव बारात निकल रही है.

हम बारात में भौजाई के साथ रहते हैं: अमरनाथ शर्मा उर्फ़ डैडी

शिव बारात के सहवल्ला अमरनाथ शर्मा डैडी बताते है कि बारात में हम दूल्हा नहीं बल्कि भौजाई के साथ रहते हैं. इस दौरान खूब हंसी मजाक चलती रहती है. हम तो बग्घी पर रहते हैं. बहुत ही मजा आता है. इस आयोजन की सबसे खास बात यह है की 1983 से आज तक सार्वजनिक चंदा नही लिया जाता, समिति के लोग अपने पास से और अपने मित्रों के सहयोग से करते है.

You may also like

Leave a Comment

cropped-tffi-png-1.png

Copyright by The Front Face India 2023. All rights reserved.