पीसा की मीनार से भी ज्यादा झुका है काशी का ‘Ratneshwar Mahadev Temple’, अलौकिक है मंदिर की वास्तुकला

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Ratneshwar Mahadev Temple: आप सभी ने इटली की “लीनिंग टावर ऑफ पीसा” यानी “पीसा की मीनार” का नाम तो जरुर सुना होगा. जो वास्तुशिल्प का अदभुत नमूना है. नींव से यह 4 डिग्री झुकी है. इसकी ऊंचाई 183 फीट है. पीसा की मीनार अपने झुकने की वजह से ही दुनिया भर में मशहूर है तथा वल्र्ड हेरिटेज में भी शामिल है. जबकि पीसा की मीनार से भी खूबसूरत वास्तुशिल्प का नमूना अपने काशी में ही मौजूद है. मणिकर्णिका घाट के नजदीक ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ जिसे मातृ ऋण मंदिर भी कहते हैं. यह अपनी नींव से 9 डिग्री झुकी हुई है तथा इसकी ऊंचाई 40 फ़ीट है. लेकिन इसकी इस विशिष्टता से बहुत कम लोग परिचित हैं. कई लोग तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं को इसे काशी करवट बताकर मूर्ख बनाते हैं. जबकि काशी करवट मंदिर कचौड़ी गली में है.

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सैकड़ों सालों से झुका हुआ

मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड के ठीक सामने स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला अलौकिक है. यह मंदिर सैकड़ों सालों से एक तरफ काफी झुका हुआ है. इसके झुके होने को लेकर कई तरह की दंत कथाएं प्रचलित हैं. फिर भी यह रहस्य ही है कि पत्थरों से बना वजनी मंदिर टेढ़ा होकर भी आखिरकार सैकड़ों सालों से खड़ा कैसे है. गंगा घाट पर जहां सारे मंदिर घाट के ऊपर बने हैं वहीं यह अकेला ऐसा मंदिर है जो घाट के नीचे बना है. इस वजह से यह छह से आठ महीनों तक पानी में डूबा रहता है. महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी में कई मंदिरों और कुंडों का निर्माण कराया. उनके शासन काल में उनकी रत्ना बाई नाम की एक दासी ने मणिकर्णिका कुंड के सामने शिव मंदिर निर्माण की इच्छा जताई और यह मंदिर बनवाया. उसी के नाम पर इसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है. बाकी इस मंदिर को लेकर भी कई सारी कथाएं प्रचलित हैं. देखें विडियो-

धरोहरों की जानकारी को हमें ही बढ़ाना होगा आगे

खराब इंजीनियरिंग के कारण पीसा की मीनार एक तरफ झुक गई. इसके बाद भी इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर दिया गया. जबकि कई बार इस मीनार को बंद भी किया जा चुका है. इसका कारण साफ था कि यह कभी भी गिर सकता है. इसके विपरीत रत्नेश्वर महादेव मंदिर यह भी हजारों वर्ष पुराना है और यह भी झुका हुआ भी है. परंतु इस पर न तो किसी का ध्यान जाता है और ना ही यहां कुछ खास भीड़ लगती है, क्योंकि हमें अपने धरोहरों की बहुत कम जानकारी है और जब तक हमें अपने धरोहरों की ही जानकारी नहीं होगी तब तक हम अपने संस्कृति को ऐसे ही खोते रहेंगे, और दूसरों की संस्कृति को अपनी संस्कृति से ऊंचा मानते रहेंगे.

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