चीन और जापान पर महंगाई की मार: बच्चे पैदा करने से कतरा रहे लोग, जानिए, सरकारें क्यों हैं चिंतामग्न

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एशिया की जमीन से महाशक्ति बनकर दुनिया पर राज करने का सपना देखने वाले चीन के लिए बुरी खबर है. जनसँख्या और महंगाई को लेकर यहां के हालत चिंतित हैं. अर्थव्यस्था लगातार डाउन हो रही है. जिससे वहां के नवविवाहित युवा बच्चों को जन्म देने से कतरा रहे हैं. विश्व के दो सबसे समृद्ध देशों में लोग बच्चों को जन्म देने से कतरा रहे हैं. जिसका कारण महंगाई है.

बढ़ती महंगाई से दुनिया के कई देश चिंतित हैं. भारत में जहां जनसंख्या कानून बनाने पर विचार किया जा रहा है, वहीँ चीन और जापान में लोग बच्चे पैदा करने से डर रहे हैं. जिससे वहां की सरकारें चिंतित हैं.

जापान के प्रधानमंत्री फुमियो कुशीदा ने चिंता जताई है कि घटे बर्थ रेट के वजह से जापान बिखरने के कगार पर है. ये हाल सिर्फ जापान का नहीं, बल्कि एशिया की जमीन से दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना देख रहे चीन का भी है. यहां भी गिरते बर्थ रेट की वजह से सरकार चिंतित है. दुनिया के दो सबसे समृद्ध देशों में हर साल पैदा होने वाले बच्चों की संख्या घटती जा रही है. इकॉनमी के मामले में चीन दुनिया की दूसरी और जापान तीसरी अर्थव्यवस्था है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इन दोनों ही देशों में नए विवाहित जोड़े बच्चे पैदा करने में कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं. इसके पीछे की वजह सुनकर आपको हो सकता कि थोडा सा आश्चर्य हो, लेकिन ये सच है. यहां बच्चे पैदा न करने की सबसे बड़ी वजह महंगाई है.

खाने पीने के सामान का खर्च, बच्चों के पढाई का खर्च, रोजमर्रा की वस्तुएं, मकान का बढ़ता किराया… इन सभी से केवल भारत के निम्न वर्गीय अथवा गरीब परिवार ही नहीं, बल्कि दुनिया के दो समृद्ध देश भी चिंतित हैं.

भारत के मुकाबले जापान में रहना भारत से लगभग 182% महंगा पड़ रहा है. वहीँ चीन में रहना भारत के मुकाबले 104% तक महंगा है. सरकारी नीतियों, सामाजिक ढांचे और आर्थिक हालात के कारण आज चीन और जापान दोनों ही देशों में युवाओं के सोचने का तरीका बदला है. लोगों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं. जिसके कारण यहां की आबादी घटनी शूरू हो गई है.

सरकार की चिंता का कारण वर्तमान में शिशुओं के पैदा न होना है. जापान और चीन में जो युवा हैं, आज से 20-25 वर्ष बाद वे उम्र के एक पड़ाव को पार कर चुके होंगे. वहीं उस समय तक इन देशों में युवाओं की संख्या न के बराबर हो जाएगी. जो कि किसी भी देश को बर्बाद करने के लिए पर्याप्त है.

जापान में आलू-टमाटर, रेस्टोरेंट का खाना, मकान किराया, दवाएं, ट्रांसपोर्टेशन भारत की तुलना में काफी ज्यादा महंगा है. भारत में किसी महानगर में 1 किग्रा आलू औसतन 32 रुपए और 1 किग्रा टमाटर औसतन 45 रुपए का मिल जाता है. जबकि जापान में आलू 290 रु० तो टमाटर 394 रु० प्रति किग्रा मिलता है. वहीँ टूथपेस्ट की एक ट्यूब भारत में 88 रु०, तो जापान में 121 रु० का है. मूवी के दो टिकट भारत में 650 या 700 रु० में मिल जाते हैं, वहीँ जापान में यही टिकट 2200 रु० से ज्यादा के हैं.

जापान में खाना 135% महंगा

आईटमजापान में कीमतभारत में कीमतअंतर
बेसिक लंच मेनू951370+156%
मैकडोनाल्ड ड्रिंक478339+41%
500 ग्रा० बोनलेस चिकन278172+62%
1 ली० फुल क्रीम दूध13955-60+154%
12 अंडे21690+141%
1 किग्रा टमाटर39445+782%
1 किग्रा सेब652162+303%
2 ली० कोका कोला12988+46%
ब्रेड 2 लोगों के लिए14339+262%

एक नजर जापान में और क्या क्या महंगा

जापान में हाउसिंग 218% ज्यादा महँगी

जापान में कपड़े भारत से 18% ज्यादा महंगे

जापान का ट्रांसपोर्ट भारत के मुकाबले 233% महंगा

दवाओं से लेकर शैम्पू और पर्सनल केयर 139% महंगा

मूवी टिकट 176% ज्यादा महंगा

जापान पारंपरिक रूप से पितृसत्तात्मक समाज रहा है. यानी समाज और परिवार में पुरुषों का प्रभाव ज्यादा रहा है. ट्रेडिशनली जापान में महिलाएं घर के काम ही करती रही हैं.

लेकिन समय के साथ जापान में शहरीकरण बढ़ा और लाइफ स्टाइल बदल गया. जापान के सख्त वर्क कल्चर की वजह से अक्सर पुरुष घर के लिए समय नहीं निकाल पाते थे. इस ट्रेंड की वजह से महिलाओं में खाली समय बिताने के लिए नौकरी करने का चलन आया.

समय के साथ महिलाओं की नौकरी से होने वाली परिवार की अतिरिक्त आय, परिवार के लिए जरूरत भी बन गई. अब जापान के शहरों में महंगाई का आलम ये है कि परिवार में पति और पत्नी दोनों का नौकरी करना जरूरी हो गया है.

जापान का 2021 का लेबर फोर्स सर्वे बताता है कि देश में 52.2% महिलाएं नौकरी कर रही हैं. 2012 में यह आंकड़ा 46.2% था. 2012 में जापान में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या करीब 2.66 करोड़ थी जबकि 2021 में नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या 3 करोड़ से ज्यादा है.

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10 साल में 60% गिरी जापान की बर्थ रेट

जानकारों के मुताबिक 10 साल पहले जापान में हर साल औसतन 20 लाख बच्चों का जन्म होता था. मगर अब हर साल औसतन 8 लाख बच्चे पैदा होते हैं.

जापान का वर्क कल्चर और बढ़ती महंगाई इस गिरती बर्थ रेट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. जापान में जनता के लिए सरकारी मदद सीमित ही होती है. 2022 में सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बताया गया था कि 20 से 40 साल के लोग महंगाई और नौकरी से जुड़ी चिंताओं के कारण फैमिली प्लानिंग करने से दूर भाग रहे हैं.

एक संस्कृति के तौर पर भी जापान का पूरा फोकस हर प्रोडक्ट और सर्विस में परफेक्शन लाने पर होता है. हालांकि, इस परफेक्शन की वजह से ही यहां कॉस्ट ऑफ लिविंग भी ज्यादा होती है.

चीन में हालात जापान जितने बुरे नहीं, मगर आबादी का घटना शुरू हो चुका है

दुनिया में जिन देशों की आबादी सबसे तेजी से घट रही है उनमें चीन का नाम शामिल नहीं है. बल्कि अभी तक चीन दुनिया की सर्वाधिक आबादी वाला देश है.

लेकिन पॉपुलेशन ग्रोथ की दर चीन में घटने लगी है. इससे भी ज्यादा चिंताजनक चीन के लिए घटती बर्थ रेट है.

2022 ऐसा साल था जब 60 साल में पहली बार चीन की आबादी में सालाना जितना इजाफा हुआ उससे ज्यादा मौतें हुईं. चीन में 2022 में 90 लाख 56 हजार बच्चे पैदा हुए हैं, जबकि 1 करोड़ 41 हजार लोगों की मौत हुई.

चीन की दो बच्चों की पॉलिसी ही नहीं महंगाई भी है घटती आबादी की जिम्मेदार

चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने 1980 से 2016 तक देश में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर रखी थी. 2016 में इसमें छूट देते हुए दो बच्चों की पॉलिसी लागू की गई. हालांकि अब इसमें भी ढील दी गई है और लोगों को 3 बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

लेकिन पॉलिसी में बदलावों के बावजूद बच्चों के मामले में लोगों की सोच नहीं बदल रही है. इसकी एक बड़ी वजह चीन में लगातार बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग है.

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