प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी से जुडी कई कहानियां हमें वेदों और पुराणों में पढ़ने को मिलती हैं. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (Prayagraj) में हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर है जिससे कई सारी कहानियां जुडी हुईं हैं तथा आश्चर्य तो यह है कि यहाँ हनुमानजी की प्रतिमा लेटी हुई अवस्था में विराजमान है. प्रयागराज संगम किनारे हनुमान जी का ये अनूठा मंदिर है जिसमें स्थापित हनुमान जी की 20 फीट लम्बी लेटी हुई प्रतिमा है. मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने के बाद ही संगम स्नान का पूरा पुण्य प्राप्त होता है. मंदिर से जुडी कई सारी कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें इसकी स्थापना कैसे हुई इसका प्रमाण मिलता है-
ये है मंदिर से जुड़ी पहली कथा
मंदिर से जुड़ी एक कथा सबसे तार्किक, प्रमाणिक और प्रासंगिक है. इसके अनुसार त्रेतायुग में जब हनुमानजी ने गुरु सूर्यदेव से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करके विदा ली तो गुरुदक्षिणा की बात चली. भगवान सूर्य ने हनुमान जी से कहा कि जब समय आने पर वे दक्षिणा मांग लेंगे. इस पर हनुमानजी ने तत्काल गुरु दक्षिणा में कुछ देने पर जोर दिया तब भगवान सूर्य ने कहा कि मेरे वंश में अवतरित अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपने भाई लक्ष्मण एवं पत्नी सीता के साथ प्रारब्ध के भोग के कारण वनवास को प्राप्त हुए हैं. वन में उन्हें कोई कठिनाई न हो या कोई राक्षस उनको कष्ट न पहुंचाए इसका ध्यान रखना. तब हनुमान जी अयोध्या की तरफ चल दिए. उन्हें देख भगवान श्रीराम ने सोचा कि यदि हनुमान ही सब राक्षसों का संहार कर डालेंगे तो मेरे अवतार का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा. अत: उन्होंने माया से हनुमान को घोर निद्रा में डालने के लिए कहा. इधर हनुमान जी जब गंगा के तट पर पहुंचे तब तक भगवान सूर्य अस्त हो गए. हनुमान जी ने माता गंगा को प्रणाम किया, और रात में नदी नहीं लांघते, यह सोचकर वहीं रात व्यतीत करने का निर्णय लिया. इसके बाद माया के वशीभूत गहन निद्रा में सो गए.


ये है मंदिर से जुड़ी दूसरी कथा
एक अन्य कथा है जो हनुमानजी के पुनर्जन्म की कथा से जुड़ी हुई है. कहते हैं कि लंका विजय के बाद बजरंग बली जब अपार कष्ट से पीड़ित होकर मरणासन्न अवस्था मे पहुंच गए थे, तो मां जानकी ने इसी जगह पर उन्हे अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोग्य व चिरायु रहने का आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा.
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ये है मंदिर से जुड़ी तीसरी कथा
तीसरी कथा के अनुसार एक समय एक व्यापारी हनुमान जी की भव्य मूर्ति लेकर जलमार्ग से चला आ रहा था. वह हनुमान जी का परम भक्त था. जब वह अपनी नाव लिए प्रयाग के समीप पहुंचा तो उसकी नाव धीरे-धीरे भारी होने लगी तथा संगम के नजदीक पहुंच कर यमुना जी के जल में डूब गई. कालान्तर में कुछ समय बाद जब यमुना जी के जल की धारा ने कुछ राह बदली, तो वह मूर्ति दिखाई पड़ी. उस समय मुसलमान शासक अकबर का शासन चल रहा था. उसने हिन्दुओं का दिल जीतने तथा अन्दर से इस इच्छा से कि यदि वास्तव में हनुमान जी इतने प्रभावशाली हैं तो वह मेरी रक्षा करेंगे, यह सोचकर उनकी स्थापना अपने किले के समीप ही करवा दी.