वक़्त के थपेड़ों को झेलता जर्जर Malviya Bridge

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Malviya-Bridge

वाराणसी और चंदौली को जोड़ने वाले मालवीय पुल (Malviya Bridge) पर आए दिन जाम की समस्या बनी रहती है. जिससे लोगों को दो-चार होना पड़ता है. इस पुल का इतिहास अपने आप में अद्भुत है. भले ही आज यह पुल कमजोर हो गया हो, लेकिन कभी भारतीय उपमहाद्वीप का पहला पुल हुआ करता था. 

समय बीतने के साथ यह पुल भी अपनी उम्र पार कर रहा है। वाराणसी और चंदौली पर स्थित इस पुल का 1 अक्टूबर सन् 1887 में उद्घाटन किया गया था. तब इसे ‘डफरिन ब्रिज’ के नाम से जाना जाता था. आजादी मिलने के बाद सन् 1948 में मदन मोहन मालवीय जी के नाम पर इस पुल का नाम ‘मालवीय पुल’ कर दिया गया. वर्तमान में लोग इसे राजघाट पुल के नाम से भी जानते हैं. यह पुल पं० दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन और काशी रेलवे स्टेशन के बीच में है. 

2017 में भाजपा की सरकार में इस पुल के रंगाई पुताई का काम किया गया था.

पहले केवल पैदल वाहनों के लिए

उद्घाटन के समय यह पुल केवल रेलवे के आवागमन के लिए था. बाद में इसे पैदल और वाहनों के लिए खोला गया. काशी के पुरनिये बताते हैं कि इस पुल को अवध और रूहेलखंड के इंजीनियरों ने मिलकर बनाया था. तत्कालीन महाराज श्रीप्रसाद नारायण सिंह की उपस्थिति में इस पुल का उद्घाटन होते समय एक नई इबादत लिखी गई. 

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दो दशक में कई बार मरम्मत हुई

बीते दो दशक की बात की जाय, तो इस पुल की कई बार मरम्मत हुई. आवागमन अवरुद्ध हुआ. लेकिन मुकम्मल मुकाम हासिल नहीं हो सका. कई बार इसके नट बोल्ट ढीले हो जाते हैं. वक़्त के थपेड़ों को झेलता हुआ यह पुल अब जर्जर हो रहा है. कहने  को तो यह ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा जैसे करनी चाहिए, वैसे इसकी रक्षा नहीं हो रही. उचित देखभाल की कमी से हमेशा इस पर खतरा बना रहता है. 

ये फोटो बाढ़ के समय की है, जब गंगा का पानी पुल के निचले हिस्से को छूने को आतुर रहता है.

आज भी उपेक्षा का शिकार

इस पुल की मियाद कई वर्ष पहले ही समाप्त हो गई थी. तभी से इस पुल पर भारी वाहनों का आवागमन तत्कालीन बसपा सरकार ने रोक दिया था. वर्ष 2015 में रेलवे और पीडब्ल्यूडी की आपसी सहमति से इसकी पैचिंग और बाइंडिंग की गई. समाजवादी पार्टी के सत्ता में आते ही इसपर एक बार फिर से भारी वाहन आने जाने लगे. हालांकि कुछ दिन बाद फिर से इस पुल पर भारी वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया गया. 2017 में सरकार बदली, भाजपा के सत्ता में आते ही पुल की रंग-रूप पर ध्यान दिया गया. जंग लगे मालवीय पुल के पार्ट्स की रंगाई पुताई की गई. लेकिन आंतरिक रूप से इसकी मजबूती पर ध्यान नहीं दिया गया. 

तब से सरकारें बदलीं, लेकिन उपेक्षा का शिकार मालवीय पुल आज भी विकास की आशा में अपने जगह खड़ा है.

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