- लोगों के चेहरे पर ख़ुशी लाती है ‘ख़ुशी की उड़ान’
- संघर्षों से जन्मी ‘सारिका’ ने रचे समाजसेवा के नए आयाम
- कई अवार्ड्स से हो चुकी हैं सम्मानित
कहते हैं कि समाजसेवा से बड़ा कोई नेक कार्य नहीं है। वैसे तो जनपद चंदौली में एनजीओ की संख्या दहाई के अंक में है। सब अपने अपने तरीके से लोगों की भलाई कर रहे हैं। कोई सर्दियों में गरीबों को कंबल बांटता है, कोई राशन। लेकिन इन सब से अलग है, जो लोगों के चेहरे पर खुशियां बिखेरता है। जी हां ! आज हम बात करने वाले हैं संस्था ‘ख़ुशी की उड़ान’ की। जिसने लोगों के चेहरे पर खुशियां लाने का जिम्मा लिया है। आइये जानते हैं इस संस्था के बारे में-
“समाज में खुश रहने के लिए लोग कई काम करते हैं। लेकिन जिस काम से दूसरों को ख़ुशी मिले, उस ख़ुशी की बात ही कुछ और है।”
ऐसा कहना है ख़ुशी की उड़ान संस्था की संस्थापिका ‘सारिका दुबे’ का। बतौर सारिका उन्हें जिस काम को करने में ख़ुशी मिलती है, वे उसी काम को बार-बार करती हैं। ऐसे में उन्होंने समाजसेवा का जिम्मा उठाया है। उनका कहना है कि वे दूसरों को ख़ुशी देकर खुद खुश होती हैं। इसलिए उन्होंने अपने संस्था का नाम भी ‘ख़ुशी की उड़ान’ रखा।


सामजिक उतार चढ़ाव में बीता जीवन
जिसने जीवन में कभी संघर्ष किया, वही उसके फल के महत्व को भी जानता है। वो कहते हैं ना कि लोहा आग में तपने के बाद ही ठोस बनता है। वही हाल सारिका का भी है। संघर्षों के बीच पली-बढ़ी सारिका ने जीवन में ढेरों संघर्ष किये हैं। चंदौली के धूस-खास ग्राम की रहने वाली सारिका ने बचपन से ही उतार-चढ़ाव देखे हैं। आज से 25-30 वर्ष पहले तक गांवों में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था। समाज के भय के कारण अपने ही दादा ने इन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया था। लेकिन जब कुछ करने का जज्बा मन में हो, तो तकदीर भी साथ देती है। सारिका ने पिताजी के सहयोग से मीलों पैदल चलकर अपनी शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 2015 में छात्राधारी सिंह पीजी कॉलेज से स्नातक कर सरकारी नौकरी न करने का फैसला लिया। इसके बाद से ही वे महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए कार्य करने लगीं।


पढ़ाई के दौरान ही समाजसेवा से जुड़ी
महात्मा गांधी ने समाजसेवा को ही सबसे बड़ा धर्म माना था। उन्हीं के बताए सिद्धांतों पर चलते हुए सारिका अपनी पढ़ाई के दौरान ही समाजसेवा से जुड़ गई थी। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 2019 में समाजसेवा की डिग्री (MSW) प्राप्त की। लेकिन उन्होंने 2017 से ही समाजसेवा में कदम रख दिया था। कहा जाता है कि कुछ लोग जन्म से ही समाजसेवी होते हैं। कुछ ऐसा ही सारिका के साथ भी हुआ। समाजसेवा का जो जज्बा दिल में लेकर इन्होंने आज से 6 वर्ष पहले शुरू किया, उसे आज ‘ख़ुशी की उड़ान’ के रूप में आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा रही हैं।


सारिका बताती हैं कि समाजसेवा का कार्य अकेले शुरु किया था। लेकिन सफर के कारवां में लोग जुड़ते गये। आज संस्था की 25-30 लोगों की टीम है। जो बीड़ा हमने अकेले उठाया था। वो आज सभी के सहयोग से चल रहा है। संस्था को आगे बढ़ाने में हमारी पूरी टीम का सहयोग है।
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कम समय में हासिल की उपलब्धियां
चंदौली की रहने वाली सारिका ने बेहद कम समय में ऊँचाई की बुलंदियां हासिल की हैं। जिसका श्रेय उन्होंने अपनी पूरी टीम को दिया है। वैसे तो इन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए काम किया है। लेकिन इन्होंने विशेष रूप से दिव्यांगों और महिलाओं का काफी सहयोग किया है। इसके लिए वे कई बार सम्मानित भी हो चुकी हैं।


अपनी वर्क परफेक्शन और यूनिक थिंकिंग के कारण वर्ष 2019 में सारिका को राष्ट्रीय अवार्ड चेंज मेकर से नवाजा गया। वहीँ इसी वर्ष 2019 में जिलाधिकारी चंदौली के ओर से महिला सशक्तिकरण के लिए यूरेशिया वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित हुईं। इसके बाद 2020 में युवा समाजसेविका, वर्ष 2021 में काशी की बेटी, वीरांगना एवं राष्ट्रीय सम्मान बेस्ट सोशल वर्कर संविधान क्लब दिल्ली में प्राप्त किया।
इसके अलावा महिलाओं के लिए उत्कृष्ट कार्य को देखते हुए DM द्वारा जिले के कई कमिटी में सदस्य बनाया गया है। जिसमें सारिका अंतरिक परिवाद समिति सदस्य, रानी लक्ष्मी बाई महिला सम्मान कोष सदस्य, लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत जनपदीय सलाहकार समिति सदस्य हैं।





