नकली दवाओं के मामले में यूपी एसटीएफ (STF) को बड़ी सफलता मिली है। एसटीएफ की वाराणसी टीम ने गुरुवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए ब्रांडेड दवाओं के नाम की नकली दवाओं की सप्लाई करने वाले गैंग का भंडाफोड़ किया है। इस गैंग का सरगना का नाम अशोक कुमार बताया जा रहा है। एसटीएसफ के हत्थे चढ़े सरगना के पास से 4 लाख रुपए से ज्यादा कैश और कई ब्रांडेड कंपनियों की नकली दवाइयां बरामद हुई हैं। पकड़े गये नकली दवाइयों की कीमत 7.5 करोड़ रुपए बताई जा रही है।
ड्रग इंस्पेक्टर अमित बंसल ने बताया कि लहरतारा के साथ ही सिगरा थाना क्षेत्र में नकली दवा बनाने की कंपनी की शिकायत पर छापेमारी की गई। प्रथम दृष्टया पकड़ी गई दवा की कीमत करोड़ों में है। दवाओं को सील कर आगे की कार्यवाही की जा रही है।


नकली दवाओं की शिकायत पर की गई छापेमारी
ड्रग इंस्पेक्टर ने आगे बताया कि हिमाचल की एक कंपनी ने उनसे शिकायत की थी कि उनके कंपनी के नाम पर वाराणसी में नकली दवा की सप्लाई हो रही है। नकली दवा बनाने की शिकायत के बाद लहरतारा और सिगरा थाना क्षेत्र में छापेमारी की गई। पकड़े गए अभियुक्त के पास से करोड़ों रुपए की दवाओं को बरामद किया गया है जिसे सील करके आगे विधिक कार्रवाई की जा रही है। ड्रग इंस्पेक्टर ने बताया कि नकली दवाओं में Monocef-O, Clavam-625 , Pan-40, Cef-Az सहित Gabapin-NT दवाओं की करीब 300 पेटी बरामद हुई है।


पूर्वांचल के कई जिलों समेत बिहार और बंगाल में हो रहा था सप्लाई
यूपी एसटीएफ के अधिकारियों की माने तो यह दवाएं वाराणसी सहित पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों के साथ ही बिहार, बंगाल और हैदराबाद राज्यों के कई जिलों में सप्लाई होते थे। आरोपी के पास से करोड़ों के दवाओं के साथ ही कूटरचित बिल और दस्तावेज भी बरामद हुए हैं। फिलहाल आरोपी से पूछताछ की जा रही है। गैंग के और कौन-कौन सदस्य हैं व कहां-कहां इन लोगो ने दवाओं की सप्लाई दी है, इसके बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है।
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डॉक्टर की विश्वसनीयता पर उठते हैं सवाल
अब इतने बड़े छापेमारी के बाद सवाल यह उठता है कि इन असली और नकली में फर्क कैसे करें। क्योंकि अधिकतर केसेज में देखा जाता है कि इसकी पहचान करने में दवाओं के जानकार भी धोखा खा जाते हैं। अक्सर डॉक्टर मरीज को दवाइयां अपने हिसाब से अच्छी लिखते हैं, लेकिन मरीज को उसका फायदा नहीं मिलता। बल्कि इसके विपरीत दवाइयां रिएक्शन करना शुरू कर देती हैं। ऐसे में डॉक्टर की डिग्री और उनकी जानकारियों पर सवाल उठने लगते हैं।


बैच मिलकर ही लें दवाइयां
कबीरचौरा के दवा व्यवसाई आशुतोष गुप्ता ने बताया कि असली और नकली में फर्क करने का सीधा सा तरीका है। दवा व्यापारी दवा खरीदते समय हमेशा GST बिल से ही दवाइयां खरीदें। साथ ही सबसे ज़रूरी यह है कि दवाओं के पत्ते पर लिखे हुए बैच नंबर और बिल के बैच नंबर हमेशा मैच करने चाहिए। यदि बैच नंबर मैच नहीं करता, तो फिर दवाओं में किसी तरह की समस्या है। जिसके बाद तुरंत इन नकली दवाओं की जांच कराते हुए संबंधित दुकानदार के खिलाफ पुलिस कंप्लेन करें।
लैब में भेजने को बाद ही होती है जांच
आमतौर पर असली और नकली दवाइयों की पहचान आसानी से नहीं की जा सकती है। इस पर जरा सा भी शक होने पर इसे जांच के लिए भेजने पर ही इसके बारे पता लगाया जा सकता है। वैसे किसी भी प्रकार के नए फार्मूला की दवा आने पर उसकी जांच ड्रग इंस्पेक्टर स्वयं करते हैं, उसके बाद ही वह दवा मार्केट में लांच होती है।
- चंदन शर्मा, फार्मासिस्ट।