Ayodhya: भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई यह नदी, जानिए इसका पौराणिक इतिहास

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भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में चारों ओर राम-नाम की गूंज है. यहां के कण-कण में प्रभु श्री राम, भगवती सीता और पवनपुत्र हनुमान का वास है. आज हम बात करेंगे अयोध्या के पवित्र सरयू नदी ( Saryu River ) की, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं.

वैसे तो भारत में नदियों को पूजने की परम्परा आदिकाल से रही है. सनातनी संस्कृति के वाहक आज भी नदियों को देवियों की संज्ञा देते हैं. सरयू के साथ भी ऐसा ही है. इस नदी का पौराणिक इतिहास है. प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर वनगमन और बैकुंठ प्रस्थान की साक्षी यह नदी रही है. राम की पैड़ी सरयू नदी के किनारे है, जहां घाट और बगीचों की लंबी श्रृंखला है. यहां कई धार्मिक अवसरों पर भक्त पवित्र स्नान करते हैं.

बौद्ध ग्रंथों में भी मिलता है जिक्र

सरयू नदी, ( Saryu River ) वैदिक कालीन नदी है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. मत्स्यपुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन मिलता है। यह नदी हिमालय से निकलकर बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है. सरयू नदी ( Saryu River ) को बौद्ध ग्रंथों में सरभ के नाम से पुकारा गया है. रामचरित मानस की चौपाई में सरयू नदी को अयोध्या की पहचान का प्रमुख चिह्न बताया गया है. राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएं तट पर स्थित है.

यूं तो सरयू नदी ( Saryu River ) का उद्गम स्थल कैलास मानसरोवर माना जाता है, परंतु अब यह नदी उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी खीरी जिले के खैरीगढ़ रियासत की राजधानी रही सिंगाही के जंगल की झील से श्रीराम नगरी अयोध्या तक ही बहती है। अयोध्या नगरी हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है. अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है.

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भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई यह नदी

पुराणों में लिखा है कि सरयू नदी भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट हुई है. प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने ब्रह्माजी के वेदों को चुरा कर समुद्र में डाल दिया और पाताल में छिप गया. तब भगवान विष्णु ने मछली का रूप धारण करके दैत्यों का वध किया और ब्रह्माजी को वेद सौंपकर अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए. ब्रह्माजी वेद पाकर बहुत प्रसन्न हुए. उनकी ख़ुशी को देखते हुए भगवान विष्णु की आंखों से प्रेम के आंसू छलक पड़े. ब्रह्मा ने उन आंसुओं को मानसरोवर में डाल कर उसे सुरक्षित कर लिया.

इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला. उसके बाद यही जलधारा सरयू नदी ( Saryu River ) कहलाई. बाद में भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाये और उन्होंने गंगा और सरयू का संगम करवाया. श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में सरयू नदी के दाएं तट पर स्थित है. यूपी सरकार के मुताबिक सरयू की कुल लंबाई करीब 160 किलोमीटर है. पुराणों के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में जलसमाधि ली थी. लेकिन, आज सरयू का पानी रामंदिर की ख़ुशी में झूम रहा है.

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यह हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा के मैदान में बहने वाली नदी है, जो बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है. अपने ऊपरी भाग में, जहां इसे ‘काली नदी’ के नाम से जाना जाता है, यह काफ़ी दूरी तक भारत (उत्तराखण्ड राज्य) और नेपाल के बीच सीमा बनाती है.

राम की पैड़ी, अयोध्या

यहां की वास्‍तविक सीढियाँ अथवा पौढि़यां, मूसलाधार बारिश में या नदी के तेज बहाव में बह गई थी. इस घाट की नई सीढि़यों को 1984 – 1985 में उत्‍तर प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री श्री श्रीपति मिश्रा और उनके सिंचाई मंत्री श्री वीर सिंह बहादुर के संयुक्‍त प्रयास से बनवाया गया था.

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